अथर्ववेद - काण्ड 12/ सूक्त 3/ मन्त्र 1
सूक्त - यमः
देवता - स्वर्गः, ओदनः, अग्निः
छन्दः - भुरिक्त्रिष्टुप्
सूक्तम् - स्वर्गौदन सूक्त
पुमा॑न्पुं॒सोऽधि॑ तिष्ठ॒ चर्मे॑हि॒ तत्र॑ ह्वयस्व यत॒मा प्रि॒या ते॑। याव॑न्ता॒वग्रे॑ प्रथ॒मं स॑मे॒यथु॒स्तद्वां॒ वयो॑ यम॒राज्ये॑ समा॒नम् ॥
स्वर सहित पद पाठपुमा॑न् । पुं॒स: । अधि॑ । ति॒ष्ठ॒ । चर्म॑ । इ॒हि॒। तत्र॑ । ह्व॒य॒स्व॒ । य॒त॒मा । प्रि॒या । ते॒ । याव॑न्तौ । अग्रे॑ । प्र॒थ॒मम् । स॒म्ऽएयथु॑: । तत् । वा॒म् । वय॑: । य॒म॒ऽराज्ये॑ । स॒मा॒नम् ॥३.१॥
स्वर रहित मन्त्र
पुमान्पुंसोऽधि तिष्ठ चर्मेहि तत्र ह्वयस्व यतमा प्रिया ते। यावन्तावग्रे प्रथमं समेयथुस्तद्वां वयो यमराज्ये समानम् ॥
स्वर रहित पद पाठपुमान् । पुंस: । अधि । तिष्ठ । चर्म । इहि। तत्र । ह्वयस्व । यतमा । प्रिया । ते । यावन्तौ । अग्रे । प्रथमम् । सम्ऽएयथु: । तत् । वाम् । वय: । यमऽराज्ये । समानम् ॥३.१॥
अथर्ववेद - काण्ड » 12; सूक्त » 3; मन्त्र » 1
विषय - पुमान्
पदार्थ -
१. घर को स्वर्ग बनाने के लिए सर्वप्रथम आवश्यक बात यह है कि मनुष्य शक्तिशाली हो। निर्बलता कभी स्वर्ग को जन्म नहीं दे सकती, अत: कहते हैं कि (पुमान्) = तू शक्तिशाली बन-पुरुष बन। (पुंसः अधितिष्ठ) = शक्तिशालियों का अधिष्ठाता बन । शक्तिशालियों में तेरा स्थान उच्च हो। (चर्म इहि) = [फलकोऽस्त्री फलं चर्म] तू ढाल को प्राप्त हो। शरीर में 'वीर्य' ही वह ढाल है, जोकि सब रोगरूप शत्रुओं के आक्रमण से हमें बचाती है। (तत्र) = वहाँ गृहस्थाश्रम में (ह्वयस्व) = तू उस जीवन के साथी को पुकार (यतमा प्रिया ते) = जोकि तुझे प्रिय हो। वस्तुत: घर का स्वर्ग बनना इस बात पर निर्भर करता है कि जीवन का साथी अनुकूल मिलता है या नहीं। साथी की अनुकूलता में घर अवश्य स्वर्ग बनता है। २. (अग्रे) = पहले ब्रह्मचर्याश्रम में आप (यावन्तौ) = जितने (प्रथमं समेयथः) = प्रथम स्थान में गतिवाले होते हो, अर्थात् उन्नति करते हो, (तत्) = वह (वाम्) = आप दोनों का (वयः) = जीवन (यमराज्ये) = संयत जीवनवाले पुरुष के राज्यभूत इस गृहस्थ में (समानम्) = समान बना रहे अर्थात् जैसे ब्रह्मचर्याश्रम में आपका जीवन संयम से उन्नत हुआ, उसी प्रकार इस गृहस्थ को भी आप दोनों ने (यमराज्ये) = संयमीपुरुष का राज्य बनाना। इस यमराज्य में आप दोनों का जीवन उसी प्रकार उन्नत बना रहे, जैसेकि ब्रह्मचर्याश्रम में उन्नत था।
भावार्थ -
घर को स्वर्ग बनाने के लिए आवश्यक है कि [क] पुरुष शक्तिशाली हो वीर्यरूप ढालवाला हो। [ख] उसे जीवन का साथी अनुकूल मिले [ग] गृहस्थ को भी ये 'यमराज्य' बनाये रक्खें, अर्थात् गृहस्थ में भी संयम व व्यवस्था से चलें।
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