Loading...

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 12/ सूक्त 3/ मन्त्र 36
    सूक्त - यमः देवता - स्वर्गः, ओदनः, अग्निः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - स्वर्गौदन सूक्त

    सर्वा॑न्त्स॒मागा॑ अभि॒जित्य॑ लो॒कान्याव॑न्तः॒ कामाः॒ सम॑तीतृप॒स्तान्। वि गा॑हेथामा॒यव॑नं च॒ दर्वि॒रेक॑स्मि॒न्पात्रे॒ अध्युद्ध॑रैनम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सर्वा॑न् । स॒म्ऽआगा॑: । अ॒भि॒ऽजित्य॑ । लो॒कान् । याव॑न्त: । कामा॑: । सम् । अ॒ती॒तृ॒प॒: । तान् । वि । गा॒हे॒था॒म् । आ॒ऽयव॑नम् । च॒ । दर्वि॑: । एक॑स्मिन् । पात्रे॑ । अधि॑ । उत् । ह॒र॒ । ए॒न॒म् ॥३.३६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सर्वान्त्समागा अभिजित्य लोकान्यावन्तः कामाः समतीतृपस्तान्। वि गाहेथामायवनं च दर्विरेकस्मिन्पात्रे अध्युद्धरैनम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सर्वान् । सम्ऽआगा: । अभिऽजित्य । लोकान् । यावन्त: । कामा: । सम् । अतीतृप: । तान् । वि । गाहेथाम् । आऽयवनम् । च । दर्वि: । एकस्मिन् । पात्रे । अधि । उत् । हर । एनम् ॥३.३६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 12; सूक्त » 3; मन्त्र » 36

    पदार्थ -

    १. हे साधक! (सर्वान् लोकान् अभिजित्य) = शरीररूप 'पृथिवी', हदयरूप अन्तरिक्ष तथा मस्तिष्करूप 'धुलोक' इन सब लोकों को जीतकर, अर्थात् शरीर को स्वस्थ, हृदय को पवित्र तथा मस्तिष्क को दीस बनाकर (सम् आगा:) = तू प्रभु के समीप प्राप्त होनेवाला हो। प्रभु-प्राप्ति के द्वारा (यावन्तः कामा:) = जितनी भी अभिलाषाएँ हैं, (तान्) = उनका तू (सम् अतीतृपः) = सम्यक् तृप्त करनेवाला हो। प्रभु-प्रासि में सब कामनाएँ पूर्ण हो ही जाती हैं। २. इस साधक के जीवन को (आयवनम्) = [आ+यु-मिश्रणामिश्रणयोः] समन्तात् बुराइयों का अमिश्रण तथा अच्छाइयों का मिश्रण (च) = और (दर्वि:) = वासनाओं का विदारण (विगाहेथाम्) = [Pervade] विशेषरूप से व्यास करनेवाले हों। इस प्रकार हे साधक! तू (एनम्) = अपने इस जीवन को (एकस्मिन्) = उस अद्वितीय (पात्रे) = रक्षक प्रभु में (अधि उद्धर) = आधिक्येन उद्धृत करनेवाला बन-प्रभुस्मरण करता हुआ तू अपने जीवन का उद्धार कर। यह प्रभुस्मरण ही तुझे भव-सागर में डूबने से बचाएगा।

    भावार्थ -

    हम 'शरीर, मन व मस्तिष्क' को स्वस्थ बनाते हुए प्रभु को प्राप्त करें। प्रभु प्राप्ति में सब कामनाएँ प्राप्त हो जाती हैं। हमारे जीवनों में बुराइयों का अमिश्रण व वासनाओं का विदारण विशेषरूप से हो। उस अद्वितीय रक्षक प्रभुस्मरण के द्वारा हम अपना उद्धार करें।

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top