अथर्ववेद - काण्ड 12/ सूक्त 3/ मन्त्र 47
सूक्त - यमः
देवता - स्वर्गः, ओदनः, अग्निः
छन्दः - भुरिक्त्रिष्टुप्
सूक्तम् - स्वर्गौदन सूक्त
अ॒हं प॑चाम्य॒हं द॑दामि॒ ममे॑दु॒ कर्म॑न्क॒रुणेऽधि॑ जा॒या। कौमा॑रो लो॒को अ॑जनिष्ट पु॒त्रोन्वार॑भेथां॒ वय॑ उत्त॒राव॑त् ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒हम् । प॒चा॒मि॒ । अ॒हम् । द॒दा॒मि॒ । मम॑ । इत् । ऊं॒ इति॑ । कर्म॑न् । क॒रुणे॑ । अधि॑ । जा॒या॒ । कौमा॑र: । लो॒क: । अ॒ज॒नि॒ष्ट॒: । पु॒त्र: । अ॒नु॒ऽआर॑भेथाम् । वय॑: । उ॒त्त॒रऽव॑त् ॥३.४७॥
स्वर रहित मन्त्र
अहं पचाम्यहं ददामि ममेदु कर्मन्करुणेऽधि जाया। कौमारो लोको अजनिष्ट पुत्रोन्वारभेथां वय उत्तरावत् ॥
स्वर रहित पद पाठअहम् । पचामि । अहम् । ददामि । मम । इत् । ऊं इति । कर्मन् । करुणे । अधि । जाया । कौमार: । लोक: । अजनिष्ट: । पुत्र: । अनुऽआरभेथाम् । वय: । उत्तरऽवत् ॥३.४७॥
अथर्ववेद - काण्ड » 12; सूक्त » 3; मन्त्र » 47
विषय - पचामि----ददामि।
पदार्थ -
१. (अहं पचामि, अहं ददामि) = घर में मैं जिस भी वस्तु का परिपाक करता हूँ, प्रथम उसे देता हूँ। अतिथियज्ञ में व बलिवैश्वदेवयज्ञ में उसका विनियोग करके यज्ञशेष का ही सेवन करता हूँ। वृद्ध माता-पिता को खिलाकर ही पीछे मैं खाता हूँ-इसप्रकार पितृयज्ञ को भी लुप्त नहीं होने देता। (मम) = मेरे (करुणे कर्मन्) = करुणात्मक कर्मों में (जाया अधि) = मेरी पत्नी अधिष्ठातृरूपेण कार्य करनेवाली है। आधार देने योग्य व्यक्तियों को [आनं चित्] आवश्यक पदार्थ प्राप्त कराना उसका कार्य है। २. (पुत्र:) = सन्तान भी (कौमार:) = क्रीड़क की मनोवृतिवाला [Sportsman like spirit] तथा (लोक:) = प्रकाशमय जीवनवाला (अजनष्ट) = हुआ है। हमारी पुत्रों व पुत्र-वधुओं के लिए एक ही प्रेरणा है कि तुम भी (अनु) = हमारे पीछे (उत्तरावत् वयः आरभेथाम्) = उत्कृष्ट जीवन को प्रारम्भ करो।
भावार्थ -
उत्कृष्ट जीवन का स्वरूप यह है कि हम [क] यज्ञशेष को खाएँ [ख] गृहिणी उपकार के कार्यों की अधिष्ठात्री हो [ग] सन्तानों को हम क्रीड़क की मनोवृत्तिवाला व प्रकाशमय जीवनवाला बनाएँ [घ] उन्हें एक ही प्रेरणा दें कि उन्होंने हमसे अधिक उत्कृष्ट जीवन बिताना है।
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