Sidebar
अथर्ववेद - काण्ड 18/ सूक्त 3/ मन्त्र 19
सूक्त - यम, मन्त्रोक्त
देवता - त्रिष्टुप्
छन्दः - अथर्वा
सूक्तम् - पितृमेध सूक्त
यद्वो॑ मु॒द्रंपि॑तरः सो॒म्यं च॒ तेनो॑ सचध्वं॒ स्वय॑शसो॒ हि भू॒त। ते अ॑र्वाणः कवय॒ आ शृ॑णोतसुवि॒दत्रा॑ वि॒दथे॑ हू॒यमा॑नाः ॥
स्वर सहित पद पाठयत् । व॒: । मु॒द्रम् । पि॒त॒र॒: । सो॒म्यम् । च॒ । ते॒नो॒ इति॑ । स॒च॒ध्व॒म् । स्वऽय॑शस: । हि । भू॒त । ते । अ॒र्वा॒ण॒: । क॒व॒य॒: । आ । शृ॒णो॒त॒ । सु॒ऽवि॒द॒त्रा: । वि॒दथे॑ । हू॒यमा॑ना: ॥३.१९॥
स्वर रहित मन्त्र
यद्वो मुद्रंपितरः सोम्यं च तेनो सचध्वं स्वयशसो हि भूत। ते अर्वाणः कवय आ शृणोतसुविदत्रा विदथे हूयमानाः ॥
स्वर रहित पद पाठयत् । व: । मुद्रम् । पितर: । सोम्यम् । च । तेनो इति । सचध्वम् । स्वऽयशस: । हि । भूत । ते । अर्वाण: । कवय: । आ । शृणोत । सुऽविदत्रा: । विदथे । हूयमाना: ॥३.१९॥
अथर्ववेद - काण्ड » 18; सूक्त » 3; मन्त्र » 19
विषय - 'अर्वाणः, कवयः, सुविदत्राः पितरः
पदार्थ -
१. हे (पितर:) = रक्षणात्मक कार्यों में प्रवृत्त पितरो ! (यत्) = जो (वः) = आपका (मुद्रम्) = आनन्दजनक (सोम्यं च) = और सोम के रक्षण की अनुकूलतावाला अतएव सौम्य स्वभाव का साधनभूत ज्ञान है (तेनो) [तेन उ] = उस ज्ञान के साथ ही (सचध्वम्) = आप हमें प्राप्त होओ। आप (हि) = निश्चय से (स्वयशसः भूत) = अपने ज्ञान व कर्मों के कारण यशस्वी हो। आपके सम्पर्क में हमें भी उत्तम ज्ञान व कर्मों की प्रेरणा प्राप्त होगी। २. (ते) = वे आप (अर्वाण:) = [अर्व to kill] वासनाओं का संहार करनेवाले, कवयः क्रान्तदर्शी व ज्ञानी हो। आभृणोत-आप हमारी पुकार को अवश्य सुनिए। (विदथे) = ज्ञानयज्ञों में (हूयमान:) = पुकारे जाते हुए आप हमारे लिए (सुविदत्रा:) = उत्तम ज्ञानधनों के द्वारा त्राण करनेवाले होते हो।
भावार्थ - पितरों से प्राप्त होनेवाला ज्ञान हमें 'आनन्द व सौम्यता प्राप्त करनेवाला होता है। ये पितर वासनाओं का संहार करनेवाले, क्रान्तदशी व उत्तम ज्ञान व धन से हमारा रक्षण करनेवाले हैं।
इस भाष्य को एडिट करें