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  • अथर्ववेद - काण्ड 18/ सूक्त 3/ मन्त्र 67
    सूक्त - यम, मन्त्रोक्त देवता - पथ्या बृहती छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - पितृमेध सूक्त

    इन्द्र॒ क्रतुं॑न॒ आ भ॑र पि॒ता पु॒त्रेभ्यो॒ यथा॑। शिक्षा॑ णो अ॒स्मिन्पु॑रुहूत॒ याम॑नि जी॒वाज्योति॑रशीमहि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इन्द्र॑ । क्रतु॑म् । न॒:। आ । भ॒र॒ । पि॒ता । पु॒त्रेभ्य॑: । यथा॑ । शिक्ष॑ । न॒: । अ॒स्मिन् । पु॒रु॒ऽहू॒त॒ । याम॑नि । जी॒वा: । ज्योति॑: । अ॒शी॒म॒हि॒ ॥३.६७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इन्द्र क्रतुंन आ भर पिता पुत्रेभ्यो यथा। शिक्षा णो अस्मिन्पुरुहूत यामनि जीवाज्योतिरशीमहि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इन्द्र । क्रतुम् । न:। आ । भर । पिता । पुत्रेभ्य: । यथा । शिक्ष । न: । अस्मिन् । पुरुऽहूत । यामनि । जीवा: । ज्योति: । अशीमहि ॥३.६७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 18; सूक्त » 3; मन्त्र » 67

    पदार्थ -
    १.(इन्द्र) = हे सर्वशक्तिमन् प्रभो। (न:) = हमारे लिए (क्रतम) = शक्ति व प्रज्ञान को इसप्रकार (आभर) = प्राप्त कराइए, यथा-जैसे पिता पुत्रेभ्य:-पिता पुत्रों के लिए प्राप्त कराता है। इस शक्ति व प्रज्ञान से ही तो हम जीवन-यात्रा को पूर्ण कर सकेंगे। २. हे (पुरुहूत) = [पुरुहूतं यस्य] पालन व पूरण करनेवाली है पुकार जिसकी, ऐसे प्रभो! आप अ(स्मिन् यामनि) = इस संसार-यात्रा के मार्ग में (जीवा:) = जीवनशक्ति से पूरिपूर्ण हुए-हुए हम (ज्योतिः अशीमहि) = ज्योति को प्रात करनेवाले हों।

    भावार्थ - प्रभु हमें शक्ति व ज्ञान प्राप्त कराएँ। हम प्रभु का आराधन करते हुए जीवनशक्ति से परिपूर्ण हों और ज्योति को प्राप्त करें।

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