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  • अथर्ववेद - काण्ड 18/ सूक्त 3/ मन्त्र 65
    सूक्त - यम, मन्त्रोक्त देवता - त्रिष्टुप् छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - पितृमेध सूक्त

    प्र के॒तुना॑बृह॒ता भा॑त्य॒ग्निरा रोद॑सी वृष॒भो रो॑रवीति।दि॒वश्चि॒दन्ता॑दुप॒मामुदा॑नड॒पामु॒पस्थे॑ महि॒षो व॑वर्ध ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्र । के॒तुना॑ । बृ॒ह॒ता । भा॒ति॒ । अ॒ग्नि: । आ । रोद॑सी॒ इति॑ । वृ॒ष॒भ: । रो॒र॒वी॒ति॒ । दि॒व: । चि॒त् । अन्ता॑त् । उ॒प॒ऽमाम् । उत् । आ॒न॒ट् । अ॒पाम् । उ॒पऽस्थे॑ । म॒हि॒ष: । व॒व॒र्ध॒ ॥३.६५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्र केतुनाबृहता भात्यग्निरा रोदसी वृषभो रोरवीति।दिवश्चिदन्तादुपमामुदानडपामुपस्थे महिषो ववर्ध ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    प्र । केतुना । बृहता । भाति । अग्नि: । आ । रोदसी इति । वृषभ: । रोरवीति । दिव: । चित् । अन्तात् । उपऽमाम् । उत् । आनट् । अपाम् । उपऽस्थे । महिष: । ववर्ध ॥३.६५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 18; सूक्त » 3; मन्त्र » 65

    पदार्थ -
    १. (अग्नि:) = प्रगतिशील जीव (बृहता) = वृद्धि के कारणभूत (केतुना) = ज्ञान से (प्रभाति) = प्रकर्षण दीप्त होता है। खुब ही ज्ञान प्राप्त करता है। (रोदसी) = द्युलोक व पृथिवीलोक में-मस्तिष्क व शरीर में (वृषभः) = शक्तिशाली बना हुआ यह अग्नि (आरोरवीति) = नित्य प्रभु का स्तवन करनेवाला बनता है। मस्तिष्क को ज्ञानदीप्त तथा शरीर को दृढ़ बनाकर प्रभु-स्तवन में प्रवृत्त होता है। २. (दिवः) = ज्ञान के प्रकाश के (अन्तात्) = परले सिरों को (चित्) = भी और (उपमान) = समीप प्रदेशों को यह (उदानट्) = प्रकृष्टरूप में व्याप्त करता है। ज्ञान का परला सिरा आत्मविद्या है और समीप का सिरा प्रकृतिविद्या । यह इन दोनों को प्राप्त करने का खूब ही प्रयत्न करता है। यह अपाम् उपस्थे रेत:कणों की उपस्थिति में शरीर में रेत:कणों के रक्षण के द्वारा (महिषः) = प्रभु का पूजन करनेवाला (ववर्ध) = वृद्धि को प्राप्त होता है। 'अपाम् उपस्थे' का भाव यह भी है कि कर्मों की गोद में, अर्थात निरन्तर यज्ञादि उत्तम कर्मों में लगा हुआ यह उपासक वृद्धि को प्राप्त करता है। वस्तुत: कर्मों में लगे रहने के द्वारा ही प्रभुपूजन होता है।

    भावार्थ - हम अधिकाधिक ज्ञानप्राप्त करने के लिए यत्नशील हों। शरीर व मस्तिष्क को शक्ति व दीप्ति से सम्पन्न करके, प्रभु का स्तवन करनेवाले बनें। आत्मविद्या व प्रकृतिविद्या को व्याप्त करते हुए कर्तव्यकर्मों को करने के द्वारा प्रभुपूजन करते हुए वृद्धि को प्रास करें।

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