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अथर्ववेद - काण्ड 18/ सूक्त 3/ मन्त्र 69
सूक्त - यम, मन्त्रोक्त
देवता - उपरिष्टात् बृहती
छन्दः - अथर्वा
सूक्तम् - पितृमेध सूक्त
यास्ते॑ धा॒नाअ॑नुकि॒रामि॑ ति॒लमि॑श्राः स्व॒धाव॑तीः। तास्ते॑ सन्तु वि॒भ्वीःप्र॒भ्वीस्तास्ते॑ य॒मो राजानु॑ मन्यताम् ॥
स्वर सहित पद पाठया: । ते॒ । धा॒ना: । अ॒नु॒ऽकि॒रामि॑ । ति॒लऽमि॑श्रा: । स्व॒धाऽव॑ती: । ता: । ते॒ । स॒न्तु॒ । वि॒ऽभ्वी: । प्र॒ऽभ्वी: । ता: । ते॒ । य॒म: । राजा॑ । अनु॑ । म॒न्य॒ता॒म् ॥३.६९॥
स्वर रहित मन्त्र
यास्ते धानाअनुकिरामि तिलमिश्राः स्वधावतीः। तास्ते सन्तु विभ्वीःप्रभ्वीस्तास्ते यमो राजानु मन्यताम् ॥
स्वर रहित पद पाठया: । ते । धाना: । अनुऽकिरामि । तिलऽमिश्रा: । स्वधाऽवती: । ता: । ते । सन्तु । विऽभ्वी: । प्रऽभ्वी: । ता: । ते । यम: । राजा । अनु । मन्यताम् ॥३.६९॥
अथर्ववेद - काण्ड » 18; सूक्त » 3; मन्त्र » 69
विषय - धान, तिल, स्वधा
पदार्थ -
१.(या:) = जिन (धाना:) = धान्यों को, (तिलमिश्रा:) = तिलों से मिलाकर (स्वधावती:) = पौष्टिक अन्न से युक्त करके (अनुकिरामि) = क्षेत्रों में क्रमश: विकीर्ण करता हूँ-खेतों में बीज के रूप में बोता हूँ, (ता:) = वे धान (ते) = तेरे लिए (विभ्वी:) = खूब अधिक (प्रभ्वी:) = उत्कृष्ट बल को पैदा करनेवाले (सन्तु) = हों [विभुत्वगुणोपेता:]।२. (यमः राजा) = सर्वनियन्ता शासक (प्रभुता:) = उन धानों को (ते) = तेरे लिए (अनुमन्यताम्) = खाने के लिए अनुमति दे। वस्तुतः प्रभु ने हमारे लिए तिल-पौष्टिक अन्न व धानों को ही भोजन के रूप में ग्रहण करने की आज्ञा दी है। 'ब्रीहिमत्तं यवमत्तं माषमत्तमथो तिलं एष वां भागो निहित:'।
भावार्थ - हम खेतों में तिल, धान व पौष्टिक अन्नों को ही पैदा करने का यत्न करें। ये हमारे लिए पर्याप्त व शक्ति देनेवाले हों। प्रभु ने हमारे लिए ये ही भोजन नियत किये हैं।
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