Loading...

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 18/ सूक्त 3/ मन्त्र 45
    सूक्त - यम, मन्त्रोक्त देवता - त्रिष्टुप् छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - पितृमेध सूक्त

    उप॑हूता नःपि॒तरः॑ सो॒म्यासो॑ बर्हि॒ष्येषु नि॒धिषु॑ प्रि॒येषु॑। त आ ग॑मन्तु॒ त इ॒हश्रु॑व॒न्त्वधि॑ ब्रुवन्तु॒ तेऽव॑न्त्व॒स्मान् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उप॑ऽहूता: । न॒: । पि॒तर॑: । सो॒म्यास॑: । ब॒र्हि॒ष्ये॑षु । नि॒ऽधिषु॑ । प्रि॒येषु॑ । ते । आ । ग॒म॒न्तु॒ । ते । इ॒ह । श्रु॒व॒न्तु॒ ।‍ अधि॑ । ब्रु॒व॒न्तु॒ । ते । अ॒व॒न्तु॒ । अ॒स्मान् ॥३.४५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उपहूता नःपितरः सोम्यासो बर्हिष्येषु निधिषु प्रियेषु। त आ गमन्तु त इहश्रुवन्त्वधि ब्रुवन्तु तेऽवन्त्वस्मान् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उपऽहूता: । न: । पितर: । सोम्यास: । बर्हिष्येषु । निऽधिषु । प्रियेषु । ते । आ । गमन्तु । ते । इह । श्रुवन्तु ।‍ अधि । ब्रुवन्तु । ते । अवन्तु । अस्मान् ॥३.४५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 18; सूक्त » 3; मन्त्र » 45

    पदार्थ -
    १. हमसे (सोम्यास:) = अत्यन्त विनीत स्वभाववाले, निरभिमान (पितर:) = पितर (उपहूता:) = पुकारे गये हैं। इन्हें हमने (बर्हिषि) = यज्ञों के निमित्त पुकारा है। सब यज्ञशील होते हुए ये हमें भी यज्ञमय जीवनवाला बनाते हैं। (एषु प्रियेषु) = इन प्रिय निधिरूप यज्ञों के निमित्त हम इन पितरों को पुकारते हैं। यज्ञों में अग्नि अन्नाद है तो वह वृष्टि द्वारा उत्तम खाद्य अन्नों को भी प्राप्त कराता है। अग्निहोत्रं स्वयं वर्षक:', 'यज्ञाद् भवति पर्जन्यः, पर्जन्यादन्न संभवः' अग्निहोत्र से वृष्टि होती है। इन यज्ञों से पर्जन्य का उद्भव होकर अन्न का सम्भव होता है, एवं हमारी सब इष्ट-कामनाओं को पूर्ण करनेवाले ये यज्ञ हमारे लिए इष्टकामधुक होते हुए हमारे प्रिय निधि हैं ही। सौम्य पितर आते हैं और वे हमें इन यज्ञों का उपदेश करते हैं। २. (ते) = वे 'पिता, पितामह व प्रपितामह' आदि पितर (आगमन्तु) = आएँ। (ते) = वे (इह) = यहाँ (श्रुवन्तु) = हमारी प्रार्थनाओं को व समस्याओं को सुनें और (अधिब्रुवन्तु) = हमें उन समस्याओं को सुलझाने के लिए सदुपायों का उपदेश दें और इसप्रकार (ते) = वे (अस्मान् अवन्तु) = हमें रक्षित करें।

    भावार्थ - विनीत, यज्ञशील पितरों को हम पुकारते हैं। वे हमें इन प्रिय निधिरूप यज्ञों में स्थापित करते हैं। आकर हमारी समस्याओं को सुनते हैं और उनके सुलझाने के लिए सदुपदेश करते हैं। इसप्रकार वे हमारा रक्षण करते है।

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top