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  • अथर्ववेद - काण्ड 18/ सूक्त 2/ मन्त्र 13
    सूक्त - यम, मन्त्रोक्त देवता - जगती छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - पितृमेध सूक्त

    उ॑रूण॒साव॑सु॒तृपा॑वुदुम्ब॒लौ य॒मस्य॑ दू॒तौ च॑रतो॒ जनाँ॒ अनु॑। ताव॒स्मभ्यं॑दृ॒शये॒ सूर्या॑य॒ पुन॑र्दाता॒मसु॑म॒द्येह भ॒द्रम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उ॒रु॒ऽन॒सौ । अ॒सु॒ऽतृपौ॑ । उ॒दु॒म्ब॒लौ । य॒मस्य॑ । दू॒तौ । च॒र॒त॒:। जना॑न् । अनु॑ । तौ । अ॒स्मभ्य॑म् । दृ॒शये॑ । सूर्या॑य । पुन॑: । दा॒ता॒म् । असु॑म् । अ॒द्य । इ॒ह । भ॒द्रम् ॥२.१३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उरूणसावसुतृपावुदुम्बलौ यमस्य दूतौ चरतो जनाँ अनु। तावस्मभ्यंदृशये सूर्याय पुनर्दातामसुमद्येह भद्रम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उरुऽनसौ । असुऽतृपौ । उदुम्बलौ । यमस्य । दूतौ । चरत:। जनान् । अनु । तौ । अस्मभ्यम् । दृशये । सूर्याय । पुन: । दाताम् । असुम् । अद्य । इह । भद्रम् ॥२.१३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 18; सूक्त » 2; मन्त्र » 13

    पदार्थ -
    १. गतमन्त्रों में वर्णित 'काम-क्रोध' (उरूणसौ) = बड़ी नाकवाले हैं-सेवन से ये बढ़ते ही जाते हैं अथवा [णस् कौटिल्ये गतौ च] ये बड़ी कुटिल गतिवाले हैं। (अ-सुतपौ) = ये कभी अच्छी प्रकार तृप्त नहीं हो जाते-बढ़ते ही जाते हैं [भूय एवाभिवर्धते] (उदुम्बलौ) = [उरुबलौ] अत्यन्त प्रबल हैं। अपराजित होते हुए ये (यमस्य दूतौ) = यम के दूत हैं-हमें मृत्यु के समीप ले-जाते हैं। ये यमदूत (जनान् अनुचरत:) = सदा मनुष्यों के पीछे चलते हैं। ये किसी का पीछा छोड़ते नहीं। २. अब यदि ये प्रबल हो जाएँ तो ये हमें समाप्त कर देते हैं, अत: इन्हें ज्ञानाग्नि द्वारा भस्मीभूत करना आवश्यक है। यदि हम इन्हें पराजित व संयत कर पाये तो (तौ) = वे काम और क्रोध (अस्मभ्यम्) = हमारे लिए (पुन:) = फिर (अद्य) = अज (इह) = यहाँ (भद्रं असुम्) = शुभ जीवन को (दाताम्) = दें और हम (दुशये सूर्याय) = दीर्घकाल तक सूर्यदर्शन करनेवाले हो सकें-दीर्घजीवी बनें।

    भावार्थ - काम-क्रोध अत्यन्त प्रबल हैं। वशीभूत हुए-हुए ये हमारे लिए भद्र जीवन दें, जिससे हम दीर्घकाल तक सूर्यदर्शन करनेवाले हों।

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