अथर्ववेद - काण्ड 18/ सूक्त 2/ मन्त्र 14
सूक्त - यम, मन्त्रोक्त
देवता - अनुष्टुप्
छन्दः - अथर्वा
सूक्तम् - पितृमेध सूक्त
सोम॒ एके॑भ्यःपवते घृ॒तमेक॒ उपा॑सते। येभ्यो॒ मधु॑ प्र॒धाव॑ति॒ तांश्चि॑दे॒वापि॑ गच्छतात्॥
स्वर सहित पद पाठसोम॑: । एके॑भ्य: । प॒व॒ते॒ । घृ॒तम् । एके॑ । उप॑ । आ॒स॒ते॒ । येभ्य॑: । मधु॑ । प्र॒ऽधाव॑ति । तान् । चि॒त् । ए॒व । अपि॑ । ग॒च्छ॒ता॒त् ॥२.१४॥
स्वर रहित मन्त्र
सोम एकेभ्यःपवते घृतमेक उपासते। येभ्यो मधु प्रधावति तांश्चिदेवापि गच्छतात्॥
स्वर रहित पद पाठसोम: । एकेभ्य: । पवते । घृतम् । एके । उप । आसते । येभ्य: । मधु । प्रऽधावति । तान् । चित् । एव । अपि । गच्छतात् ॥२.१४॥
अथर्ववेद - काण्ड » 18; सूक्त » 2; मन्त्र » 14
विषय - सोम-घृत-मधु
पदार्थ -
१. (एकेभ्यः) = कुछ पितरों से (सोमः) = सोम [यत् सामानि सोम एभ्यः पवते । तै० २.१०.१] साममन्त्र-उपासना मन्त्र (पवते) = प्रवाहित होते हैं। (एके) = कई पितर (घृतम्) = [यद् यजूंषि घृतस्य कूल्या: । तै०२.१०.१] यजुर्मन्त्रों को (उपासते) = उपासित करते हैं, (येभ्य:) = जिससे मधु प्रभावति [यद् अथर्वागिसो मधोः कूल्या: तै० २.१०.१] अथर्वमन्त्र गतिवाले होते हैं। यह उपासक (चित्) = निश्चय से (तान् एव) = उनके प्रति ही (अपि गच्छतात्) = जानेवाला हो। २. जिन पितरों से साममन्त्र प्रवाहित होते हैं उनके सम्पर्क में यह साधक भी उपासना की वृत्तिवाला बनेगा। यजर्मन्त्रों के उपासकों के सम्पर्क में यह भी यज्ञशील होगा तथा अथर्वमन्त्रों में गतिवालों के सम्पर्क में यह भी अथर्वा [स्थिरवृत्ति] का बनता हुआ प्रभु को पास करनेवाला होगा।
भावार्थ - हम 'उपासक, यज्ञशील, स्थिरवृत्तिवाले' पितरों के सम्पर्क में आएँ और हम भी 'सोम-घृत-मधु' के उपासक बनें। साम, यजुः व अथर्वमन्त्रों को अपनानेवाले बनें।
इस भाष्य को एडिट करें