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  • अथर्ववेद - काण्ड 18/ सूक्त 2/ मन्त्र 33
    सूक्त - यम, मन्त्रोक्त देवता - त्रिष्टुप् छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - पितृमेध सूक्त

    अपा॑गूहन्न॒मृतां॒ मर्त्ये॑भ्यः कृ॒त्वा सव॑र्णामदधु॒र्विव॑स्वते।उ॒ताश्विना॑वभर॒द्यत्तदासी॒दज॑हादु॒ द्वा मि॑थु॒ना स॑र॒ण्यूः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒प । अ॒गू॒ह॒न् । अ॒मृता॑म् । मर्त्ये॑भ्य: । कृ॒त्वा । सऽव॑र्णाम् । अ॒द॒धु॒: । विव॑स्वते । उ॒त । अ॒श्विनौ॑ । अ॒भ॒र॒त् । यत् । तत् । आसी॑त् । अज॑हात् । ऊं॒ इति॑ । द्वा । मि॒थु॒ना । स॒र॒ण्यू: ॥२.३३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अपागूहन्नमृतां मर्त्येभ्यः कृत्वा सवर्णामदधुर्विवस्वते।उताश्विनावभरद्यत्तदासीदजहादु द्वा मिथुना सरण्यूः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अप । अगूहन् । अमृताम् । मर्त्येभ्य: । कृत्वा । सऽवर्णाम् । अदधु: । विवस्वते । उत । अश्विनौ । अभरत् । यत् । तत् । आसीत् । अजहात् । ऊं इति । द्वा । मिथुना । सरण्यू: ॥२.३३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 18; सूक्त » 2; मन्त्र » 33

    पदार्थ -
    १. (अमृताम्) = कभी नष्ट न होनेवाली-अथवा मृत्यु से बचानेवाली इस वेदवाणी को (मर्त्येभ्यः) = वासनाओं से आक्रान्त होकर विषयों के पीछे मरनेवाले मनुष्यों से (अपागूहन्) = दूर छिपाकर रखा जाता है। मर्त्य इसे प्राप्त नहीं कर सकता। यह अमृत वेदवाणी असंयत जीवनवाले पुरुष को प्राप्त नहीं होती। इस वेदवाणी को (सवर्णाम् कृत्वा) = [स-वर्णाम्] प्रभुवर्णन से युक्त करके (विवस्वते) = ज्ञानी पुरुष के लिए (अदधुः) = धारण करते हैं। 'सर्वे वेदा यत् पदमामनन्ति' इस वाक्य के अनुसार वेदों का मुख्य प्रतिपाद्य विषय ब्रह्म ही है। २. जब एक ज्ञानी पुरुष इस वेदवाणी का धारण करता है तब यह (उत) = निश्चय से (अश्विनौ अभरत्) = प्राणापान का पोषण करती है,'असुनीति' का-प्राणविद्या का प्रतिपादन करनेवाली यह वेदवाणी प्राणापान का पोषण क्यों न करेगी? (यत्) = जो (तत्) = वह प्राणापान का पोषण करनेवाली अमृता वेदवाणी (आसीत्) = थी, अर्थात् जब इसने हमारे प्राणापान की शक्तियों का वर्धन किया तो (सरण्यू:) = ज्ञान व कर्म से हमारा मेल करनेवाली इस वेदवाणी ने (उ) = निश्चय से (द्वा मिथुना) = दो युगलभूत 'नासत्या व दला' को (जहात्) = जन्म दिया। ज्ञान ही नासत्य है-ज्ञान से सत्य का दर्शन होता है [न+असत्य]; और कर्म ही दस है-कर्म से सब बुराइयों का संहार होता है [दसु उपक्षये]।

    भावार्थ - प्रभुकृपा से हमारा इस 'सरण्यू' नामवाली वेदवाणी से सम्बन्ध हो और हमारे जीवन में सत्य व पवित्रता का संचार हो।

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