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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 97 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 97/ मन्त्र 23
    ऋषिः - कर्णश्रुद्वासिष्ठः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - विराट्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    प्र दा॑नु॒दो दि॒व्यो दा॑नुपि॒न्व ऋ॒तमृ॒ताय॑ पवते सुमे॒धाः । ध॒र्मा भु॑वद्वृज॒न्य॑स्य॒ राजा॒ प्र र॒श्मिभि॑र्द॒शभि॑र्भारि॒ भूम॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्र । दा॒नु॒ऽदः । दि॒व्यः । दा॒नु॒ऽपि॒न्वः । ऋ॒तम् । ऋ॒ताय॑ । प॒व॒ते॒ । सु॒ऽमे॒धाः । ध॒र्मा । भु॒व॒त् । वृ॒ज॒न्य॑स्य । राजा॑ । प्र । रा॒स्मिऽभिः॑ । द॒शऽभिः॑ । भा॒रि॒ । भूम॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्र दानुदो दिव्यो दानुपिन्व ऋतमृताय पवते सुमेधाः । धर्मा भुवद्वृजन्यस्य राजा प्र रश्मिभिर्दशभिर्भारि भूम ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    प्र । दानुऽदः । दिव्यः । दानुऽपिन्वः । ऋतम् । ऋताय । पवते । सुऽमेधाः । धर्मा । भुवत् । वृजन्यस्य । राजा । प्र । रास्मिऽभिः । दशऽभिः । भारि । भूम ॥ ९.९७.२३

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 97; मन्त्र » 23
    अष्टक » 7; अध्याय » 4; वर्ग » 15; मन्त्र » 3
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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (सुमेधाः) सर्वज्ञः परमात्मा (ऋतं) सत्यतां (ऋताय) कर्मयोगिने (पवते) पुनाति स च (दानुपिन्वः) जिज्ञासूनां धनादिभिः पुष्टिकारकः (दिव्यः) तेजोमयः (दानुदः) दातॄणामपि दातास्ति (धर्मा, भुवत्) अखिलधर्माणां धारकः (वृजन्यस्य) बलस्य च धारकः (रश्मिभिः, दशभिः) स्थूलसूक्ष्मभेदेन दशसंख्याकभूतानां शक्तिभिः (भूम, प्र, भारि) चराचरं जगद्धारयति (राजा) अखिलसृष्टेः प्रकाशकश्च ॥२३॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (सुमेधाः) स्वप्रकाश परमात्मा (ऋतम्) सच्चाई को (ऋताय) कर्मयोगी के लिये (पवते) पवित्र करता है, वह परमात्मा (दानुपिन्वः) जिज्ञासुओं को धन दानादिकों से पुष्ट करनेवाला है, (दिव्यः) दिव्य है, (दानुदः) सब दाताओं का दाता है, वह (धर्मा भुवत्) सब धर्मों को धारण करनेवाला है, (वृजन्यस्य) साधुबल का धारण करनेवाला है, (रश्मिभिर्दशभिः) पाँच सूक्ष्म पाँच स्थूल भूतों की शक्तियों द्वारा (भूम, प्रभारि) इस चराचर जगत् को धारण कर रहा है और (राजा) सब लोक-लोकान्तरों का प्रकाश करनेवाला है ॥२३॥

    भावार्थ

    परमात्मा इस चराचर जगत् का निर्माण करनेवाला है, उसी ने सम्पूर्ण संसार को रचकर धर्म की मर्यादा को बाँधा है ॥२३॥

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    विषय

    उत्तम शासक विद्वान् के कर्त्तव्य। पक्षान्तर में परमेश्वर का वर्णन।

    भावार्थ

    (दानुदः) दान देने योग्य ज्ञान और ऐश्वर्य का देने वाला, (दिव्यः) ज्ञान और तेज में निष्ठ पुरुष (दानु-पिन्वः) अपने दान से सबको मेघवत् सेचन कर पुष्ट करने वाला, (सु-मेधाः) उत्तम बुद्धि-वाणी से युक्त होकर, गुरुवत् (ऋताय) सत्याचरणशील, सत्पथगामी, शिष्य को (ऋतम् पवते) सत्य ज्ञान का प्रदान करे। वह (वृजन्यस्य) बल का (धर्मा) धारण करने वाला (राजा) तेजस्वी, सूर्यवत् (दशभिः रश्मिभिः) दशों दिशाओं में जाने वाली किरणों के तुल्य, दशों प्राणों, वा दशों अमात्यों से (भूम) बहुतों को, वा बड़े भारी राष्ट्र को कुलवत् (प्र भारि) खूब पालन पोषण करने में समर्थ होता है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः-१—३ वसिष्ठः। ४-६ इन्द्रप्रमतिर्वासिष्ठः। ७–९ वृषगणो वासिष्ठः। १०–१२ मन्युर्वासिष्ठः। १३-१५ उपमन्युर्वासिष्ठः। १६-१८ व्याघ्रपाद्वासिष्ठः। १९-२१ शक्तिर्वासिष्ठः। २२–२४ कर्णश्रुद्वासिष्ठः। २५—२७ मृळीको वासिष्ठः। २८–३० वसुक्रो वासिष्ठः। ३१–४४ पराशरः। ४५–५८ कुत्सः। पवमानः सोमो देवता ॥ छन्द:– १, ६, १०, १२, १४, १५, १९, २१, २५, २६, ३२, ३६, ३८, ३९, ४१, ४६, ५२, ५४, ५६ निचृत् त्रिष्टुप्। २-४, ७, ८, ११, १६, १७, २०, २३, २४, ३३, ४८, ५३ विराट् त्रिष्टुप्। ५, ९, १३, २२, २७–३०, ३४, ३५, ३७, ४२–४४, ४७, ५७, ५८ त्रिष्टुप्। १८, ४१, ५०, ५१, ५५ आर्ची स्वराट् त्रिष्टुप्। ३१, ४९ पादनिचृत् त्रिष्टुप्। ४० भुरिक् त्रिष्टुप्। अष्टापञ्चाशदृचं सूक्तम्॥

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    विषय

    सुमेधाः

    पदार्थ

    (दानुदः) = दानशील पुरुषों के लिये देनेवाले, (दानुपिन्वः) = इन दानशीलों को धनों से सिक्त करनेवाले (दिव्यः) = प्रकाशमय (सुमेधाः) = [शामेना प्रज्ञा यस्मात्] उत्तम मेधा को देनेवाले प्रभु (ऋताय) = नियमित जीवनवाले पुरुष के लिये (ऋतम्) = सत्य को प्रपवते प्रकर्षेण प्राप्त कराते हैं। ये प्रभु इस उपासक के लिये (वृजन्यस्य) = बल के (धर्माभुवत्) = धारण करनेवाले होते हैं । (राजा) = वे दीप्त प्रभु (दशाभिः) = दश इन्द्रियों से सम्बद्ध (रश्मिभिः) = लगामों से अर्थात् दसों इन्द्रियों को मन रूप लगाम द्वारा निरुद्ध करने से (भूम) = खूब ही (प्रभारि) = धारण किये जाते हैं। प्रभु का दर्शन तभी होता है, जब कि इन्द्रियों को निरुद्ध किया जाये। विषयों में अनासक्त इन्द्रियों के होने पर आवृत्त चक्षु पुरुष ही उस प्रत्यगात्मा को देख पाता है।

    भावार्थ

    भावार्थ - प्रभु दर्शन के लिये आवश्यक है कि हमारा जीवन नियमित हो [ ऋताय] तथा हम इन्द्रियों को निरुद्ध करनेवाले हों ।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Most charitable giver, heavenly, promoter of liberal philanthropists, self-refulgent inspirer of noble intelligence, Soma purifies and enhances the rectitude of the enlightened. Being the sustainer of Dharma, master ruler of all powers and forces of the universe, the mighty Soma sustains the world by the dynamics of the ten gross and subtle elements of nature.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमेश्वर या चराचर जगाचा निर्माणकर्ता आहे. त्यानेच संपूर्ण जगाची रचना करून धर्माची मर्यादा बांधलेली आहे. ॥२३॥

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