ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 97/ मन्त्र 6
ऋषिः - इन्द्रप्रमतिर्वासिष्ठः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
स्तो॒त्रे रा॒ये हरि॑रर्षा पुना॒न इन्द्रं॒ मदो॑ गच्छतु ते॒ भरा॑य । दे॒वैर्या॑हि स॒रथं॒ राधो॒ अच्छा॑ यू॒यं पा॑त स्व॒स्तिभि॒: सदा॑ नः ॥
स्वर सहित पद पाठस्तो॒त्रे । रा॒ये । हरिः॑ । अ॒र्ष॒ । पु॒ना॒नः । इन्द्र॑म् । मदः॑ । ग॒च्छ॒तु॒ । ते॒ । भरा॑य । दे॒वैः । या॒हि॒ । स॒ऽरथ॑म् । राधः॑ । अच्छ॑ । यू॒यम् । पा॒त॒ । स्व॒स्तिऽभिः॑ । सदा॑ । नः॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
स्तोत्रे राये हरिरर्षा पुनान इन्द्रं मदो गच्छतु ते भराय । देवैर्याहि सरथं राधो अच्छा यूयं पात स्वस्तिभि: सदा नः ॥
स्वर रहित पद पाठस्तोत्रे । राये । हरिः । अर्ष । पुनानः । इन्द्रम् । मदः । गच्छतु । ते । भराय । देवैः । याहि । सऽरथम् । राधः । अच्छ । यूयम् । पात । स्वस्तिऽभिः । सदा । नः ॥ ९.९७.६
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 97; मन्त्र » 6
अष्टक » 7; अध्याय » 4; वर्ग » 12; मन्त्र » 1
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अष्टक » 7; अध्याय » 4; वर्ग » 12; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(हरिः) प्रलयकाले सर्ववस्तूनामात्मनि संहरणात् हरिः परमात्मा (इन्द्रं) कर्मयोगिनं (पुनानः) पावयन् (अर्ष) आयाति (राये) ऐश्वर्याय (स्तोत्रे) याज्ञिकस्तुतौ समायाति। हे हरे ! (ते, मदः) तवानन्दः (भराय) संग्रामाय (गच्छतु) प्राप्यतां (देवैः) विद्वद्भिः (याहि) प्राप्नोतु मां (राधः, अच्छ) शुभैश्वर्यं च ददातु (यूयम्) भवान् (स्वस्तिभिः) शुभवाग्भिः (सदा) शश्वत् (नः, पात) अस्मान् रक्षतु ॥६॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(हरिः) “हरतीति हरिः” जो प्रलयकाल में सब कार्य्यों को अपने में लय कर लेता है, उसका नाम यहाँ हरि है। वह हरि (इन्द्रम्) कर्मयोगी को (पुनानः) पवित्र करता हुआ (अर्ष) आता है और (राये) ऐश्वर्य्य के लिये (स्तोत्रे) यज्ञसम्बन्धी स्तोत्रों में आकर प्राप्त होता है। हे हरि ! (ते) तुम्हारा (मदः) आनन्द (भराय) संग्राम के लिये (गच्छतु) प्राप्त हो और (देवैः) विद्वानों के साथ (याहि) आकर आप हमको प्राप्त हो, (राधः) ऐश्वर्य्य (अच्छ) हमको दें और (यूयम्) आप (स्वस्तिभिः) स्वस्तिवचनों से (नः) हमारी सदा के लिये (पात) रक्षा करें ॥६॥
भावार्थ
जो परमात्मा प्रलयकाल में सब वस्तुओं का एकमात्र आधार होता हुआ विराजमान है, वह परमात्मा हमको आनन्द प्रदान करे ॥६॥
विषय
आत्मा का वीर सेनापतिवत् वर्णन।
भावार्थ
हे विद्वन् ! शासक ! हे आत्मन् ! तू (हरिः) उत्तम प्रजा का दु:खहारी और मनोहारी होकर (पुनानः) राष्ट्र को निष्कण्टक एवं अपने को अभिषिक्त करता हुआ, (स्तोत्रे राये) स्तुति योग्य ऐश्वर्य को प्राप्त करने के लिये हो। (ते मदः) तेरा हर्ष और सुख (भराय) संग्राम के (इन्द्रं गच्छतु) परमेश्वर्यवान् प्रभु को प्राप्त हो। तू अपने (देवैः) वीरों, विद्वानों और प्राणों सहित (सरथं) रथ, देह से युक्त होकर वीर सेना-पतिवत् (राधः अच्छ पाहि) आराध्य प्रभु को धन के तुल्य प्राप्त कर। हे विद्वान् जो (यूयं नः सदा स्वस्तिभिः पात) हमें सदा आप लोग उत्तम उपायों से पालन करो।
टिप्पणी
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ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः-१—३ वसिष्ठः। ४-६ इन्द्रप्रमतिर्वासिष्ठः। ७–९ वृषगणो वासिष्ठः। १०–१२ मन्युर्वासिष्ठः। १३-१५ उपमन्युर्वासिष्ठः। १६-१८ व्याघ्रपाद्वासिष्ठः। १९-२१ शक्तिर्वासिष्ठः। २२–२४ कर्णश्रुद्वासिष्ठः। २५—२७ मृळीको वासिष्ठः। २८–३० वसुक्रो वासिष्ठः। ३१–४४ पराशरः। ४५–५८ कुत्सः। पवमानः सोमो देवता ॥ छन्द:– १, ६, १०, १२, १४, १५, १९, २१, २५, २६, ३२, ३६, ३८, ३९, ४१, ४६, ५२, ५४, ५६ निचृत् त्रिष्टुप्। २-४, ७, ८, ११, १६, १७, २०, २३, २४, ३३, ४८, ५३ विराट् त्रिष्टुप्। ५, ९, १३, २२, २७–३०, ३४, ३५, ३७, ४२–४४, ४७, ५७, ५८ त्रिष्टुप्। १८, ४१, ५०, ५१, ५५ आर्ची स्वराट् त्रिष्टुप्। ३१, ४९ पादनिचृत् त्रिष्टुप्। ४० भुरिक् त्रिष्टुप्। अष्टापञ्चाशदृचं सूक्तम्॥
विषय
इन्द्रं मदो गच्छतु ते भराय
पदार्थ
हे सोम ! (हरिः) = सब दुःखों का हरण करनेवाला होता हुआ तू (पुनानः) = पवित्र किया जाता हुआ (स्तोत्रे) = अपने स्तवन करनेवाले के लिये (राये अर्षा) = ऐश्वर्य के लिये प्राप्त हो। अपने स्तोता को तू ऐश्वर्य प्राप्त करानेवाला है । (ते मदः) = तेरा मद, तेरे रक्षण से उत्पन्न हुआ हुआ उल्लास (भराय) = रोगों व वासनाओं से संग्राम के लिये (इन्द्रं गच्छतु) = इस जितेन्द्रिय पुरुष को प्राप्त हो । हे सोम ! तू (देवैः) = दिव्यगुणों के साथ (सरथम्) = समान शरीररूप रथ पर आरूढ़ होकर (राधः अच्छः) = ऐश्वर्य की ओर (याहि) = जा । तू शरीर में सुरक्षित होने पर दिव्यगुणों व ऐश्वर्य को प्राप्त करानेवाला हो । हे सोमकणो! (यूयम्) = तुम (सदा) = हमेशा (नः) = हमें (स्वस्तिभिः) = कल्याणमय स्थितियों के द्वारा पात = सुरक्षित करो। इन सोमकणों के रक्षण से हम सदा कल्याणमार्ग के पथिक बनें।
भावार्थ
भावार्थ- सुरक्षित सोम ऐश्वर्य उल्लास व शुभकर्मों को प्राप्त करानेवाला होता है। यह हमें जीवन संग्राम के लिये उल्लासमय बनाता है।
इंग्लिश (1)
Meaning
O Hari, Soma spirit destroyer of suffering, flow pure and purifying for the achievement of wealth, honour and excellence when songs are sung and yajna is performed. O Soma, may your vigour and ecstasy flow to Indra, the ruling soul, for the sake of victory and human glory. May your power and potential come well with the light and vigour of divinities by the chariot of glory and may all the divinities protect and promote us with all round well being and good fortune for all time.
मराठी (1)
भावार्थ
जो परमेश्वर प्रलयकाळात सर्व वस्तूंचा आधार असून सर्वत्र विराजमान असतो त्याने आम्हाला आनंद द्यावा. ॥६॥
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