ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 97/ मन्त्र 32
ऋषिः - पराशरः शाक्त्त्यः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
कनि॑क्रद॒दनु॒ पन्था॑मृ॒तस्य॑ शु॒क्रो वि भा॑स्य॒मृत॑स्य॒ धाम॑ । स इन्द्रा॑य पवसे मत्स॒रवा॑न्हिन्वा॒नो वाचं॑ म॒तिभि॑: कवी॒नाम् ॥
स्वर सहित पद पाठकनि॑क्रदत् । अनु॑ । पन्था॑म् । ऋ॒तस्य॑ । शु॒क्रः । वि । भा॒सि॒ । अ॒मृत॑स्य । धाम॑ । सः । इन्द्रा॑य । प॒व॒से॒ । म॒त्स॒रऽवा॑न् । हि॒न्वा॒नः । वाच॑म् । म॒तिऽभिः॑ । क॒वी॒नाम् ॥
स्वर रहित मन्त्र
कनिक्रददनु पन्थामृतस्य शुक्रो वि भास्यमृतस्य धाम । स इन्द्राय पवसे मत्सरवान्हिन्वानो वाचं मतिभि: कवीनाम् ॥
स्वर रहित पद पाठकनिक्रदत् । अनु । पन्थाम् । ऋतस्य । शुक्रः । वि । भासि । अमृतस्य । धाम । सः । इन्द्राय । पवसे । मत्सरऽवान् । हिन्वानः । वाचम् । मतिऽभिः । कवीनाम् ॥ ९.९७.३२
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 97; मन्त्र » 32
अष्टक » 7; अध्याय » 4; वर्ग » 17; मन्त्र » 2
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अष्टक » 7; अध्याय » 4; वर्ग » 17; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
हे परमात्मन् ! (ऋतस्य, पन्थां) सत्यस्य मार्गं (कनिक्रदत्) उपदिशन् (शुक्रः, वि, भासि) बलस्वरूपो भवान् विराजते (अमृतस्य, धाम) मोक्षस्थानं च भवान् (सः) स पूर्वोक्तो भवान् (इन्द्राय, पवसे) कर्मयोगिनं पुनाति (मत्सरवान्) आनन्दस्वरूपः (कवीनां, वाचं) मेधाविनां वाणीं (मतिभिः, हिन्वानः) स्वज्ञानैः प्रेरयन् (पवसे) पवित्रयति ॥३२॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
हे परमात्मन् ! (ऋतस्य) सच्चाई के (पन्थाम्) रास्ते का (कनिक्रदत्) उपदेश करते हुए (शुक्रः) बलस्वरूप आप (विभासि) प्रकाशमान हो रहे हो, तुम (अमृतस्य, धाम) अमृत के धाम हो (सः) उक्तगुणसम्पन्न आप (इन्द्राय) कर्मयोगी को (पवसे) पवित्र करते हैं, (मत्सरवान्) आप आनन्दस्वरूप हैं, (कवीनाम्) मेधावी पुरुषों की (वाचम्) वाणी को (मतिभिः) अपने ज्ञानों द्वारा (हिन्वानः) प्रेरणा करते हुए (पवसे) पवित्र करते हैं ॥३२॥
भावार्थ
जो लोग ज्ञानयोगी व कर्मयोगी हैं, परमात्मा उनके उद्योग को अवश्यमेव सफल करता है ॥३२॥
विषय
अग्रणी विद्वान् के कर्त्तव्य।
भावार्थ
हे प्रभो ! विद्वन् ! तू (ऋतस्य पन्थाम् अनु कनिक्रदत्) सत्य ज्ञान के मार्ग का निरन्तर उपदेश करता हुआ, स्वयं (शुक्रः) अति तेजस्वी सूर्यवत् प्रकाशवान् होकर (अमृतस्य धाम वि भासि) अमृत मय मोक्ष के लोक को विशेष रूप से प्रकाशित करता है। (सः) वह तू (मत्सरवान्) सब को तृप्त, सुखी करने वाले आनन्द से युक्त होकर (कवीनां मतिभिः) कवियों, विद्वानों और दीर्घदर्शी तत्वज्ञानियों की बुद्धियों, वाणियों द्वारा (वाचं हिन्वानः) अपनी वाणी को प्रेरित और वर्धित करता हुआ (इन्द्राय धाम पवसे) जीव गण के हितार्थ तेजः प्रकाश को प्रदान करता है।
टिप्पणी
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ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः-१—३ वसिष्ठः। ४-६ इन्द्रप्रमतिर्वासिष्ठः। ७–९ वृषगणो वासिष्ठः। १०–१२ मन्युर्वासिष्ठः। १३-१५ उपमन्युर्वासिष्ठः। १६-१८ व्याघ्रपाद्वासिष्ठः। १९-२१ शक्तिर्वासिष्ठः। २२–२४ कर्णश्रुद्वासिष्ठः। २५—२७ मृळीको वासिष्ठः। २८–३० वसुक्रो वासिष्ठः। ३१–४४ पराशरः। ४५–५८ कुत्सः। पवमानः सोमो देवता ॥ छन्द:– १, ६, १०, १२, १४, १५, १९, २१, २५, २६, ३२, ३६, ३८, ३९, ४१, ४६, ५२, ५४, ५६ निचृत् त्रिष्टुप्। २-४, ७, ८, ११, १६, १७, २०, २३, २४, ३३, ४८, ५३ विराट् त्रिष्टुप्। ५, ९, १३, २२, २७–३०, ३४, ३५, ३७, ४२–४४, ४७, ५७, ५८ त्रिष्टुप्। १८, ४१, ५०, ५१, ५५ आर्ची स्वराट् त्रिष्टुप्। ३१, ४९ पादनिचृत् त्रिष्टुप्। ४० भुरिक् त्रिष्टुप्। अष्टापञ्चाशदृचं सूक्तम्॥
विषय
अमृतस्य धाम
पदार्थ
(शुक्रः) = शुद्ध सोम वासनाओं की मलिनता से रहित सोम (ऋतस्य) = यज्ञ के (पन्थाम्) = मार्ग को (अनुकनिक्रदत्) = अनूदित फिर-फिर उच्चारित करता है। अर्थात् सोमरक्षक पुरुष का जीवन यज्ञमय बनता है । हे सोम ! तू (अमृतस्य) = नीरोगता का (धाम) = घर होता हुआ (विभासि) = विशिष्ट शोभा वाला होता है। अपने रक्षक को यह सोम नीरोग व तेजस्वी बनाता है। (मत्सरवान्) = प्रशस्त आनन्द के संचार करनेवाला (सः) = वह तू (इन्द्राय पवसे) = जितेन्द्रिय पुरुष के लिये प्राप्त होता है। तू (कवीनाम्) = क्रान्तदर्शी ज्ञानियों की (मतिभिः) = बुद्धियों के साथ (वाचम्) = ज्ञान की वाणी को (हिन्वानः) = [प्रेरयन्:] प्रेरित करता है । सोमरक्षण से बुद्धि सूक्ष्म बनती है और ज्ञान की वृद्धि होती है ।
भावार्थ
भावार्थ- सोम हमारे जीवनों को 'यज्ञमय, नीरोग, आनन्दयुक्त व बुद्धि और ज्ञान से सम्पन्न' बनाता है ।
इंग्लिश (1)
Meaning
Loud and bold you reveal the path of truth and rectitude and define the eternal law of existence. Self- refulgent, immaculate and omnipotent, you shine in glory, the very abode of immortality. You vibrate, radiate and sanctify for the sake of Indra, the soul of the karma- yogi, and for the conscience of humanity, inspiring the poets and sages with vision and imagination and the visionary scientists with thought to burst forth in spontaneous songs of adoration, you being the treasure- hold of ecstasy, indeed ecstasy itself.
मराठी (1)
भावार्थ
जे लोक ज्ञानयोगी व कर्मयोगी आहेत. परमात्मा त्यांच्या उद्योगात सफलता प्रदान करतो. ॥३२॥
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