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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 97 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 97/ मन्त्र 41
    ऋषिः - पराशरः शाक्त्त्यः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - स्वराडार्चीत्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    म॒हत्तत्सोमो॑ महि॒षश्च॑कारा॒पां यद्गर्भोऽवृ॑णीत दे॒वान् । अद॑धा॒दिन्द्रे॒ पव॑मान॒ ओजोऽज॑नय॒त्सूर्ये॒ ज्योति॒रिन्दु॑: ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    म॒हत् । तत् । सोमः॑ । म॒हि॒षः । च॒का॒र॒ । अ॒पाम् । यत् । गर्भः॑ । अवृ॑णीत । दे॒वान् । अद॑धात् । इन्द्रे॑ । पव॑मानः । ओजः॑ । अज॑नयत् । सूर्ये॑ । ज्योतिः॑ । इन्दुः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    महत्तत्सोमो महिषश्चकारापां यद्गर्भोऽवृणीत देवान् । अदधादिन्द्रे पवमान ओजोऽजनयत्सूर्ये ज्योतिरिन्दु: ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    महत् । तत् । सोमः । महिषः । चकार । अपाम् । यत् । गर्भः । अवृणीत । देवान् । अदधात् । इन्द्रे । पवमानः । ओजः । अजनयत् । सूर्ये । ज्योतिः । इन्दुः ॥ ९.९७.४१

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 97; मन्त्र » 41
    अष्टक » 7; अध्याय » 4; वर्ग » 19; मन्त्र » 1
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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (इन्दुः) स परमात्मा (सूर्ये) भौतिकसूर्ये (ज्योतिः, अजनयत्) प्रकाशमुत्पादयति (पवमानः) सर्वस्य पावकः सः (इन्द्रे) कर्मयोगिनि (ओजः, अदधात्) ज्ञानबलं दधाति (महिषः) महान् (सोमः) परमात्मा (तत्, महत्, चकार) तत् महत्कार्यं करोति (यत्) यत् कार्यं (अपां) वाष्परूपप्रकृतेः अंशेषु (देवान्) सूर्यादिदिव्यपदार्थानां (गर्भः) उत्पत्तिरूपगर्भात् (अवृणीत) व्रियते स्म ॥४१॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (इन्दुः) जो प्रकाशस्वरूप परमात्मा (सूर्ये) भौतिक सूर्य में (ज्योतिः) प्रकाश को (अजनयत्) उत्पन्न करता है और (पवमानः) सबको पवित्र करनेवाला वह परमात्मा (इन्द्रे) कर्मयोगी के लिये (ओजः) ज्ञानप्रकाशरूपी बल (अदधात्) धारण कराता है और (महिषः) महान् (सोमः) सोम (तत्, महत्) उस बड़े काम को (चकार) करता है, (यत्) जो (अपाम्) वाष्प-रूप-प्रकृति के अंशों में (देवान्) सूर्यादि दिव्य पदार्थों के (गर्भः) उत्पत्तिरूप गर्भ से (अवृणीत) वरण किया गया है  ॥४१॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में परमात्मा को सूर्य्यादिकों के प्रकाशकरूप से वर्णन किया है, इसी अभिप्राय से उपनिषत्कार ऋषियों ने परमात्मा को सूर्य्यादिकों का प्रकाशक माना है ॥४१॥

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    विषय

    उपास्य प्रभु का वर्णन।

    भावार्थ

    वह (महिषः) महान् पूज्य (सोमः) सर्व सञ्चालक प्रभु, परमेश्वर (तत् महत् चकार) उस महान् आकाश को भी बनाता है (यत्) जो (अपाम् गर्भः) समस्त प्रकृति के परमाणुओं एवं जीवों के लिंग शरीरों को भी (गर्भः) गर्भवत् होकर (देवान् अवृणीत्) देहस्थ इन्द्रियगण के तुल्य जगत् से अग्नि आदि पञ्चभूतों, सूर्य, चन्द्र, पृथिवी और समस्त लोकों को भी आवरण कर रहा है। वह (पवमानः) सबको प्रेरणा करने और व्यापने हारा प्रभु ही (इन्द्रे ओजः अजनयत्) विद्युत् में तेज, बल, पराक्रम प्रकट करता है, वही (इन्दुः) स्वयं तेजोमय प्रभु ही (सूर्ये ज्योतिः अजनयत्) सूर्य में प्रकाश उत्पन्न करता है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः-१—३ वसिष्ठः। ४-६ इन्द्रप्रमतिर्वासिष्ठः। ७–९ वृषगणो वासिष्ठः। १०–१२ मन्युर्वासिष्ठः। १३-१५ उपमन्युर्वासिष्ठः। १६-१८ व्याघ्रपाद्वासिष्ठः। १९-२१ शक्तिर्वासिष्ठः। २२–२४ कर्णश्रुद्वासिष्ठः। २५—२७ मृळीको वासिष्ठः। २८–३० वसुक्रो वासिष्ठः। ३१–४४ पराशरः। ४५–५८ कुत्सः। पवमानः सोमो देवता ॥ छन्द:– १, ६, १०, १२, १४, १५, १९, २१, २५, २६, ३२, ३६, ३८, ३९, ४१, ४६, ५२, ५४, ५६ निचृत् त्रिष्टुप्। २-४, ७, ८, ११, १६, १७, २०, २३, २४, ३३, ४८, ५३ विराट् त्रिष्टुप्। ५, ९, १३, २२, २७–३०, ३४, ३५, ३७, ४२–४४, ४७, ५७, ५८ त्रिष्टुप्। १८, ४१, ५०, ५१, ५५ आर्ची स्वराट् त्रिष्टुप्। ३१, ४९ पादनिचृत् त्रिष्टुप्। ४० भुरिक् त्रिष्टुप्। अष्टापञ्चाशदृचं सूक्तम्॥

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    विषय

    इन्द्रे ओजः, सूर्ये ज्योतिः

    पदार्थ

    (महिषः) = पूजा के योग्य, अत्यन्त आदरणीय (सोमः) = सोम ने (तत् महत् चकार) = वह महान् कर्म किया (यत्) = कि (अपां गर्भः) = कर्मों का धारण करनेवाला होता हुआ (देवान्) = दिव्य गुणों का (अवृणीत) = वरण करता था । सोमरक्षण द्वारा क्रियाशीलता व दिव्यता की प्राप्ति होती है। (पवमानः) = यह पवित्र करनेवाला (सोम इन्द्रे) = जितेन्द्रिय पुरुष में (ओजः अदधात्) = ओजस्विता का स्थापन करता है । (इन्दुः) = यह शक्तिशाली सोम (सूर्ये) = [सरति] निरन्तर क्रियाशील पुरुष में (ज्योतिः अजनयत्) = प्रकाश को उत्पन्न करता है ।

    भावार्थ

    भावार्थ- सोम दिव्यता, ओज व ज्योति को प्राप्त कराता है। मन को दिव्य, शरीर को ओजस्वी व मस्तिष्क को ज्योतिर्मय करता है ।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Soma, potent absolute, generated the Mahat mode of Prakrti, Mother Nature, which is the womb of all elements, energies and forms of existence and which comprehends all perceptive, intelligential and psychic powers as well. And then the creative-generative lord of evolutionary action, Soma, vested lustre and energy in Indra, the soul, and, lord of light as it is, Soma vested light in the sun.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात परमेश्वराला सूर्य इत्यादीकांचा प्रकाशक या रूपाने वर्णन केलेले आहे. याच अभिप्रायाने उपनिषदकार ऋषींनी परमेश्वराला सूर्य इत्यादींचा प्रकाशक मानलेले आहे. ॥४१॥

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