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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 97 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 97/ मन्त्र 56
    ऋषिः - कुत्सः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    ए॒ष वि॑श्व॒वित्प॑वते मनी॒षी सोमो॒ विश्व॑स्य॒ भुव॑नस्य॒ राजा॑ । द्र॒प्साँ ई॒रय॑न्वि॒दथे॒ष्विन्दु॒र्वि वार॒मव्यं॑ स॒मयाति॑ याति ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ए॒षः । वि॒श्व॒ऽवित् । प॒व॒ते॒ । म॒नी॒षी । सोमः॑ । विश्व॑स्य । भुव॑नस्य । राजा॑ । द्र॒प्सान् । ई॒रय॑न् । वि॒दथे॑षु । इन्दुः॑ । वि । वार॑म् । अव्य॑म् । स॒मया॑ । अति॑ । या॒ति॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    एष विश्ववित्पवते मनीषी सोमो विश्वस्य भुवनस्य राजा । द्रप्साँ ईरयन्विदथेष्विन्दुर्वि वारमव्यं समयाति याति ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    एषः । विश्वऽवित् । पवते । मनीषी । सोमः । विश्वस्य । भुवनस्य । राजा । द्रप्सान् । ईरयन् । विदथेषु । इन्दुः । वि । वारम् । अव्यम् । समया । अति । याति ॥ ९.९७.५६

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 97; मन्त्र » 56
    अष्टक » 7; अध्याय » 4; वर्ग » 22; मन्त्र » 1
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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (एषः) अयं परमात्मा (विश्ववित्) सर्वज्ञः (पवते) पुनाति च सर्वान् (मनीषी) सूक्ष्मशक्तिप्रेरकः (सोमः) सर्वोत्पादकः स (विश्वस्य, भुवनस्य) अखिललोकानां (राजा) प्रकाशकः (इन्दुः) प्रकाशमयः सः (विदथेषु) ज्ञानवद्यज्ञेषु (द्रप्सान्) ज्ञानानि (ईरयन्) प्रेरयन् (अव्यं) रक्षार्हं (वारं) वरणीयं पुरुषं (समया, अति, याति) अत्यन्तान्तिकं प्राप्नोति ॥५६॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (एषः) उक्त परमात्मा (विश्ववित्) सर्वज्ञ है, (पवते) सबको पवित्र करनेवाला है, (मनीषी) सूक्ष्म से सूक्ष्म शक्तियों का प्रेरक है, (सोमः) वह सर्वोत्पादक परमात्मा (विश्वस्य) सम्पूर्ण (भुवनस्य) लोकों का (राजा) प्रकाशक है, (इन्दुः) वह प्रकाशस्वरूप परमात्मा (विदथेषु) ज्ञानयज्ञों में (द्रप्सान्) ज्ञानों की (ईरयन्) प्रेरणा करता हुआ (अव्यम्) रक्षायोग्य (वारम्) वरणीय पुरुष को (समयाति, याति) अतिसंनिहित प्राप्त होता है ॥५६॥

    भावार्थ

    जो परमात्मज्ञान के अधिकारी हैं, परमात्मा उन्हीं को प्राप्त होता है, अन्यों को नहीं ॥५६॥

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    विषय

    मेधावी का माता पिता से भी अधिक मान्य पद।

    भावार्थ

    (एषः) यह (विश्ववित्) समस्त विश्व को जानने वाला, (मनीषी) मेधावी, सबके मनों में ज्ञान की प्रेरणा करने वाला, (विश्वस्य भुवनस्य राजा) समस्त भुवन, लोक का राजा, प्रकाशक; (विदथेषु द्रप्सान् ईरयन्) संग्रामों में वेगवान् अश्वों को आगे बढ़ाते हुए सेनापति के समान, (विदथेषु) ज्ञान मार्गों में वा प्राप्तव्य लोकों में (द्रप्सान्) आगे बढ़ने वाले जीवगणों वा रसों को (ईरयन्) प्रेरित करते हुए आ, (समयाति) दोनों प्रकार से (अव्यं वारम् अति याति) रक्षक, स्नेही माता पिता दोनों के वरणीय पद से पार कर जाता है, दोनों से बढ़ जाता है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः-१—३ वसिष्ठः। ४-६ इन्द्रप्रमतिर्वासिष्ठः। ७–९ वृषगणो वासिष्ठः। १०–१२ मन्युर्वासिष्ठः। १३-१५ उपमन्युर्वासिष्ठः। १६-१८ व्याघ्रपाद्वासिष्ठः। १९-२१ शक्तिर्वासिष्ठः। २२–२४ कर्णश्रुद्वासिष्ठः। २५—२७ मृळीको वासिष्ठः। २८–३० वसुक्रो वासिष्ठः। ३१–४४ पराशरः। ४५–५८ कुत्सः। पवमानः सोमो देवता ॥ छन्द:– १, ६, १०, १२, १४, १५, १९, २१, २५, २६, ३२, ३६, ३८, ३९, ४१, ४६, ५२, ५४, ५६ निचृत् त्रिष्टुप्। २-४, ७, ८, ११, १६, १७, २०, २३, २४, ३३, ४८, ५३ विराट् त्रिष्टुप्। ५, ९, १३, २२, २७–३०, ३४, ३५, ३७, ४२–४४, ४७, ५७, ५८ त्रिष्टुप्। १८, ४१, ५०, ५१, ५५ आर्ची स्वराट् त्रिष्टुप्। ३१, ४९ पादनिचृत् त्रिष्टुप्। ४० भुरिक् त्रिष्टुप्। अष्टापञ्चाशदृचं सूक्तम्॥

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    विषय

    विश्ववित् मनीषी

    पदार्थ

    (एषः) = यह (सोम) = वीर्य (विश्ववित्) = सर्व पदार्थों का ज्ञान प्राप्त करनेवाला, (मनीषी) = बुद्धिमान् (पवते) - हमें प्राप्त होता है। यही ज्ञानादि का ईंधन बनता है, सो सब पदार्थों के ज्ञान का साधन है। बुद्धि की सूक्ष्मता इसी पर निर्भर करती है। यह सोम (विश्वस्य भुवनस्य) = सम्पूर्ण भुवन का, शरीर के अंग-प्रत्यंग का राजा दीप्त करनेवाला है। यह (इन्दुः) = शक्तिशाली सोम (विदथेषु) = ज्ञानयज्ञों के निमित्त (द्रप्सान्) = अपने कणों को [Drops] (ईरयन्) = मस्तिष्क की ओर प्रेरित करता हुआ (वारम्) = वासनाओं का वारण करनेवाले (अव्यं) = रक्षकों में उत्तम पुरुष को (समया) = समीपता से (वि अतियाति) = विशेषतया खूब प्राप्त होता है ।

    भावार्थ

    भावार्थ - यह सोम ज्ञानाग्नि को दीप्त करता है । सब पदार्थों के ज्ञान का साधन बनता है । बुद्धि को सूक्ष्म बनाता है। वासनाओं को रोकनेवाले को यह प्राप्त होता है ।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    This Soma knows, holds and consecrates the world as a holy place for life. Omniscient and all- sentient, it is the refulgent ruler of the entire universe. Spirit of light, beauty and grace of generosity, inspiring and energising perception and awareness of the holy performers in yajnas, it moves and enlightens the chosen protected soul, abides there and moves on.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जे पमरेश्वराच्या ज्ञानाचे अधिकारी आहेत. परमेश्वर त्यांनाच प्राप्त होतो, इतरांना नाही. ॥५६॥

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