ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 97/ मन्त्र 44
ऋषिः - पराशरः शाक्त्त्यः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
मध्व॒: सूदं॑ पवस्व॒ वस्व॒ उत्सं॑ वी॒रं च॑ न॒ आ प॑वस्वा॒ भगं॑ च । स्वद॒स्वेन्द्रा॑य॒ पव॑मान इन्दो र॒यिं च॑ न॒ आ प॑वस्वा समु॒द्रात् ॥
स्वर सहित पद पाठमध्वः॑ । सूद॑म् । प॒व॒स्व॒ । वस्वः॑ । उत्स॑म् । वी॒रम् । च॒ । नः॒ । आ । प॒व॒स्व॒ । भग॑म् । च॒ । स्वद॑स्व । इन्द्रा॑य । पव॑मानः । इ॒न्दो॒ इति॑ । र॒यिम् । च॒ । नः॒ । आ । प॒व॒स्व॒ । स॒मु॒द्रात् ॥
स्वर रहित मन्त्र
मध्व: सूदं पवस्व वस्व उत्सं वीरं च न आ पवस्वा भगं च । स्वदस्वेन्द्राय पवमान इन्दो रयिं च न आ पवस्वा समुद्रात् ॥
स्वर रहित पद पाठमध्वः । सूदम् । पवस्व । वस्वः । उत्सम् । वीरम् । च । नः । आ । पवस्व । भगम् । च । स्वदस्व । इन्द्राय । पवमानः । इन्दो इति । रयिम् । च । नः । आ । पवस्व । समुद्रात् ॥ ९.९७.४४
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 97; मन्त्र » 44
अष्टक » 7; अध्याय » 4; वर्ग » 19; मन्त्र » 4
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अष्टक » 7; अध्याय » 4; वर्ग » 19; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(इन्दो) हे प्रकाशस्वरूप भगवन् ! भवान् (मध्वः, सूदं) माधुर्यरसान् (आ पवस्व) मह्यं ददातु (वस्वः) धनस्य (उत्सं) उपयोगिनमैश्वर्यं च ददातु (वीरं, च) वीरसन्तानं च (नः) अस्मभ्यं (आ, पवस्व) सम्प्रददातु (भगं) विविधैश्वर्यं च ददातु (इन्द्राय) कर्मयोगिने (स्वदस्व) आनन्दं दत्त्वा (पवमानः) पवित्रयन् (रयिं) ऐश्वर्यं (समुद्रात्) अन्तरिक्षात् (नः) अस्मभ्यं (आ, पवस्व) ददातु ॥४४॥
हिन्दी (4)
पदार्थ
(इन्दो) प्रकाशस्वरूप परमात्मन् ! आप (मध्वः सूदम्) मधुरता के रसों को (आपवस्व) हमको दें, (वस्वः) धनों के (उत्सम्) उपयोगी ऐश्वर्य्यों को आप हमें दें और (वीरम्) वीर सन्तानों को आप (नः) हमें (आपवस्व) दें (च) और (भगम्) सब प्रकार के ऐश्वर्य्य आप हमें दें, (इन्द्राय) कर्मयोगी के लिये (स्वदस्व) आनन्द देकर (पवमानः) पवित्र करते हुए (रयिम्) सब प्रकार के ऐश्वर्य्यों को आप (समुद्रात्) अन्तरिक्ष से (नः) हमको (आपवस्व) दें ॥४४॥
भावार्थ
परमात्मा कर्मयोगी अर्थात् उद्योगी पुरुषों पर प्रसन्न होकर उन्हें नाना प्रकार के ऐश्वर्य्य प्रदान करता है, इसलिये पुरुष को चाहिये कि वह उद्योगी बनकर परमात्मा के ऐश्वर्य्य का अधिकारी बने ॥४४॥
Bhajan
आज का वैदिक भजन 🙏 826
ओ३म् मध्व॒: सूदं॑ पवस्व॒ वस्व॒ उत्सं॑ वी॒रं च॑ न॒ आ प॑वस्वा॒ भगं॑ च ।
स्वद॒स्वेन्द्रा॑य॒ पव॑मान इन्दो र॒यिं च॑ न॒ आ प॑वस्वा समु॒द्रात् ॥
ऋग्वेद 9/97/44
अमृत छलका दे
प्यासा हूँ कब से मैं भगवन्
देखो
हो रहा नीरस तन मन
हे सर्वेश्वर ! हे पवमान परमात्मन्
हे सुख कारक, दु:ख भंजन
करुणामय हे ! प्रीतिदाय
क्या मैं नहीं हूँ तेरा प्रणाय्य
कर दो आनन्दित, हे आनन्दघन !
दु:खियों के करुणाकन्द
हे इन्दु ! कर दो मधु वर्षण
मधुमय भगवन् !!
अमृत छलका दे
प्यासा हूँ कब से मैं भगवन्
देखो
हो रहा नीरस तन मन
चखूँ जहाँ से वहीं से हो मीठे
फिर क्यूँ प्रभु तुम रूठे ?_ (१)
अपने जैसा मीठा बना दो
हे वसुमान ! वसु के
प्राण हमारे कर दो नियन्त्रित
बनें वसिष्ठ हम ऋषि सम
करो स्वीकार समर्पण
अमृत छलका दे
प्यासा हूँ कब से मैं भगवन्
देखो
हो रहा नीरस तन मन
हे प्रभु ! वीर रसों के वसुधन
वीर रसों से भरो मन
फिर षडरिपु तो होंगे पलायित
होंगे न उनके दर्शन
कर दो प्रदान सौभाग्य भी हमको
हृदय बना दो सरलतम
जागें भाव अहिंसन
अमृत छलका दे
प्यासा हूँ कब से मैं भगवन्
देखो
हो रहा नीरस तन मन
हे सोमदेव !! आकर्ष जगाओ
रसना करे तेरा स्वादन
ऐसा चिर चस्का लग जाए
छूट ना जाए आकर्षण
तेरे ऐश्वर्य के सुख सागर से
पा लें कुछ बूंदें हम
बन जाएँ, तेरे भाजन
अमृत छलका दे
प्यासा हूँ कब से मैं भगवन्
देखो
हो रहा नीरस तन मन
हे सर्वेश्वर ! हे पवमान परमात्मन्
हे सुखकारक, दु:ख भंजन
*रचनाकार व स्वर :- ललित मोहन साहनी जी
वीडियो निर्माण:- अदिति शेठ द्वारा– मुम्बई*
राग :- मालगुंजी
शीर्षक :- कुछ बूंदे हम पर भी बरसा दो 24
तर्ज :- पून्निनो मल्लादे येन्दिनो तून्दियो रिष्टम मधुमय मलयालम धुन के महान संगीतकार
पवमान = पूर्ण पवित्र
प्राणाय्य = प्रेम करने वाला, चाहने वाला
वसु = अग्नि
षड्रिपु = छः शत्रु (काम क्रोध लोग मोह अहंकार)
पलायित = भागा हुआ
आकर्ष = खिंचाव
भाजन = पात्र, योग्य
Vyakhya
https://youtu.be/uZaQ5bDhGIU?si=-fxxAkMzQpeCNzU6
🕉🧘♂️प्रिय श्रोताओ व स्वाध्याय शील पाठको आज अदिति बिटिया ने एक और भजन- वीडियो बनाकर भेजा है जो मैं आपके साथ शेयर कर रहा हूँ।
वीडियो के साथ मन्त्र के भावों का स्वाध्याय करते हुए यदि आप भजन सुनेंगे तो और अधिक आनन्द आयेगा।
आप सबको अतिथि एवं मेरी ओर से अत्यंत शुभकामनाएं❗
प्रस्तुत भजन से सम्बन्धित पूज्य श्री ललित साहनी जी का सन्देश :-- 👇👇
कुछ बूंदें हमपर भी बरसा दो।
हे सर्वेश्वर! आप पवमान हो,परम पवित्र हो,जन मानस को पवित्र करनेवाले हो।आप 'इन्दु' हो, दुःखियों के प्रति करुणा से पिघल जानेवाले हो,उन्हें सहानुभूति देनेवाले हो।।
आप मधुमय हो।हमपर अपने मधु की वर्षा करो।आप सब ओर से मीठे ही मीठे हों।हमें भी मीठा बना दो।आप मधुर आनन्द- रस से भरपूर हो हमें भी आनन्दित कर दो।आप वसुमान हो, हमारे लिए भी वसु का झरना झराओ।
वसु वे प्राण हैं जिनके नियन्त्रण से शरीर के सब इन्द्रिय आदि,निवास को प्राप्त कर लेते हैं।उन वसु प्राणों को वश में करने से हम वसिष्ठ ऋषि बन सकते हैं।
हे सोम प्रभु! आप वीर रस के धनी हो, हमारे मन और आत्मा को भी वीररस से भर दो।जब हमारे अंदर वीररस हिलोरें लेगा,तब काम क्रोध,लोभ,मोह,वैर द्वेष, अहंकार आदि शत्रु हमें प्रभावित कर ही नहीं पायेंगे।वे हमारे सामने से डरकर भाग खड़े होंगे।जैसे शेर के सामने से मृग,सूर्य के सामने अंधेरा।
हे सौभाग्यशाली सोम प्रभु! आप हमें सौभाग्य प्रदान करो।सभी अच्छाईयां सहज आती चली जाएं।
हे मधुरता के महादेव ! आप मेरे आत्मा को मीठे,स्वादु लगने लगो।एक बार तुम्हारा स्वाद चख लिया तो ऐसा चस्का लग जायेगा कि सांसारिक सब मधुरताएं फीकी लगने लगेंगी।आपका स्वाद जन्म भर के लिए आपमें ही रह जाएगा।
हे सब ऐश्वर्यों के स्वामी,सोम परमेश्वर!आप अपने दिव्य ऐश्वर्य के सागर से कुछ ऐश्वर्य की बूंदें हमारे ऊपर भी गिरा दो।
हमें भी अहिंसा और सत्य का पुजारी बना दो, अस्तेय, ब्रह्मचर्य का दिवाना बना दो,हमें दया,दान और सरलता का प्रेमी बना दो,हमें ज्ञानी और कर्मनिष्ठ बना दो।इति।
🕉🧘♂️ वैदिक श्रोताओं को हार्दिक धन्यवाद एवं
शुभकामनाएं❗🌹🙏
विषय
विद्रान् शासक के कर्त्तव्य।
भावार्थ
हे (इन्दो) ऐश्वर्यवन् ! तू (मध्वः सूदं पवस्व) मधुर अन्न के उत्तम रस को प्राप्त कर और करा। और (नः) हमें (वस्वः उत्सम्) धनैश्वर्य के विकास रूप (वीरं च भगं च) वीर, विद्वान् और ऐश्वर्यवान् पुरुष (आपवस्व) प्राप्त करा। (पवमानः इन्द्राय स्वदस्व) अभिषिक्त होकर ऐश्वर्ययुक्त राज्य का भोग कर। और (समुद्रान् नः रयिम् आ पवस्व) समुद्र से हमें ऐश्वर्य प्राप्त करा। समुद्र से रत्न मुक्तादि तथा समुद्र द्वारा व्यापार से नाना ऐश्वर्य प्राप्त करा।
टिप्पणी
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ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः-१—३ वसिष्ठः। ४-६ इन्द्रप्रमतिर्वासिष्ठः। ७–९ वृषगणो वासिष्ठः। १०–१२ मन्युर्वासिष्ठः। १३-१५ उपमन्युर्वासिष्ठः। १६-१८ व्याघ्रपाद्वासिष्ठः। १९-२१ शक्तिर्वासिष्ठः। २२–२४ कर्णश्रुद्वासिष्ठः। २५—२७ मृळीको वासिष्ठः। २८–३० वसुक्रो वासिष्ठः। ३१–४४ पराशरः। ४५–५८ कुत्सः। पवमानः सोमो देवता ॥ छन्द:– १, ६, १०, १२, १४, १५, १९, २१, २५, २६, ३२, ३६, ३८, ३९, ४१, ४६, ५२, ५४, ५६ निचृत् त्रिष्टुप्। २-४, ७, ८, ११, १६, १७, २०, २३, २४, ३३, ४८, ५३ विराट् त्रिष्टुप्। ५, ९, १३, २२, २७–३०, ३४, ३५, ३७, ४२–४४, ४७, ५७, ५८ त्रिष्टुप्। १८, ४१, ५०, ५१, ५५ आर्ची स्वराट् त्रिष्टुप्। ३१, ४९ पादनिचृत् त्रिष्टुप्। ४० भुरिक् त्रिष्टुप्। अष्टापञ्चाशदृचं सूक्तम्॥
विषय
मध्वः सूदं, वस्वः उत्सम्
पदार्थ
हे (पवमान) = पवित्र करनेवाले सोम ! तू (मध्वः सूदम्) = माधुर्य के झरने को [सूद = spring] (पवस्व) = प्राप्त करा । अर्थात् हमारे जीवन को माधुर्य से युक्त कर । (वस्वः उत्सम्) = वसुओं के स्रोत को तू प्राप्त करा । जीवन के लिये सब आवश्यक तत्त्व ही वसु हैं। उन सब तत्त्वों को जन्म देनेवाला यह सोम है । (च) = और हे सोम ! तू (नः) = हमारे लिये (वीरम्) = वीर सन्तानों को (च) = और (भगम्) = ऐश्वर्य को देनेवाला हो । सोमरक्षण करनेवाला पुरुष वीर सन्तानों को प्राप्त करता है और सुपथ से धनार्जन कर पाता है । हे (इन्दो) = शक्तिशाली सोम ! तू (इन्द्राय) = जितेन्द्रिय पुरुष के लिये (स्वदस्व) = रुचिकर हो, जितेन्द्रिय पुरुष तेरे रक्षण में ही आनन्द का अनुभव करे। (च) = और (नः) = हमारे लिये समुद्रात् उस आनन्दमय प्रभु से [स+मुद्] (रयिम्) = ज्ञानैश्वर्य को (आपवस्वा) = प्राप्त करानेवाला हो । सोमरक्षण से ही हृदयस्थ प्रभु की वाणी सुन पड़ती है और वास्तविक ज्ञान की उपलब्धि होती है ।
भावार्थ
भावार्थ- सुरक्षित सोम 'माधुर्य, वसु, वीर सन्तान, ऐश्वर्य और ज्ञानैश्वर्य' को प्राप्त करानेवाला होता है ।
इंग्लिश (1)
Meaning
Pacify and consecrate the springs of honey sweets and let these flow free, let abundance of wealth, honour and excellence, let power, prosperity and glory flow to us all. Spirit and power of peace and purity, refulgent and beatific Indu, be sweet and kind for the soul. Let immense wealth flow from the bottomless sea.
मराठी (1)
भावार्थ
परमात्मा कर्मयोगी अर्थात उद्योगी पुरुषांवर प्रसन्न होऊन त्यांना नाना प्रकारचे ऐश्वर्य प्रदान करतो त्यासाठी पुरुषांनी उद्योगी बनून परमात्म्याच्या ऐश्वर्याचा अधिकारी बनावे. ॥४४॥
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