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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 97 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 97/ मन्त्र 31
    ऋषिः - पराशरः शाक्त्त्यः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - पादनिचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    प्र ते॒ धारा॒ मधु॑मतीरसृग्र॒न्वारा॒न्यत्पू॒तो अ॒त्येष्यव्या॑न् । पव॑मान॒ पव॑से॒ धाम॒ गोनां॑ जज्ञा॒नः सूर्य॑मपिन्वो अ॒र्कैः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्र । ते॒ । धाराः॑ । मधु॑ऽमतीः । अ॒सृ॒ग्र॒न् । वारा॑न् । यत् । पू॒तः । अ॒ति॒ऽएषि॑ । अव्या॑न् । पव॑मान । पव॑से । धाम॑ । गोना॑म् । ज॒ज्ञा॒नः । सूर्य॑म् । अ॒पि॒न्वः॒ । अ॒र्कैः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्र ते धारा मधुमतीरसृग्रन्वारान्यत्पूतो अत्येष्यव्यान् । पवमान पवसे धाम गोनां जज्ञानः सूर्यमपिन्वो अर्कैः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    प्र । ते । धाराः । मधुऽमतीः । असृग्रन् । वारान् । यत् । पूतः । अतिऽएषि । अव्यान् । पवमान । पवसे । धाम । गोनाम् । जज्ञानः । सूर्यम् । अपिन्वः । अर्कैः ॥ ९.९७.३१

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 97; मन्त्र » 31
    अष्टक » 7; अध्याय » 4; वर्ग » 17; मन्त्र » 1
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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (पवमान) हे सर्वपावक ! भवान् (गोनां, धाम) सर्वज्योतिषामाश्रयः (जज्ञानः) आविर्भवन् (अर्कैः, सूर्यं, अपिन्वः) स्वकिरणैः सूर्यं पुष्णाति (ते, धाराः) भवदानन्दवीचयः (मधुमतीः) मधुराः (यत्) यदा (पूतः) स्वपवित्रभावयुक्तः (अव्यान्, अत्येषि) रक्षितव्यपदार्थान् प्राप्नोति (प्र, असृग्रन्) तदा ते धारु विविधभावान् जनयन्ति (वारान्) वरणीयपदार्थांश्च (पवसे) पवित्रयति भवान् ॥३१॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (पवमान) हे सबको पवित्र करनेवाले परमात्मन्। आप (गोनाम्) सब ज्योतियों का (धाम) निवासस्थान हैं और (जज्ञानः) आप अपने अविर्भाव से (अर्कैः) किरणों के द्वारा (सूर्यम्) सूर्य को (अपिन्वः) पुष्ट करते हैं और (ते धाराः) तुम्हारे आनन्द की लहरें (मधुमतीः) मीठी हैं और (यत्) जब (पूतः) अपने पवित्रभाव से (अव्यान्) रक्षायुक्त पदार्थों को (अत्येषि) प्राप्त होते हो, तब तुम्हारी उक्त धारायें (प्रासृग्रन्) अनन्तप्रकार के भावों को उत्पन्न करती हैं और आप (वारान्) वरणीय पदार्थों को (पवसे) पवित्र करते हैं ॥३१॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में परमात्मा की ज्योतियों का वर्णन है अर्थात् परमात्मा की दिव्य ज्योतियाँ सब पदार्थों को पवित्र करती हैं ॥३१॥

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    विषय

    अग्रणी विद्वान् के कर्त्तव्य।

    भावार्थ

    हे प्रभो ! (यत्) जो तू (पूतः) अति पवित्र स्वरूप होकर (अव्यान् वारान्) अवि अर्थात् प्रकृति के बने समस्त आवरणों को पार करके (अत्येषि) विराजता है। (ते मधुमतीः धाराः प्र असृग्रन्) तेरी मधुमयी, ज्ञानमयी, वाणियां अति सुखद रूप से प्रकट होती हैं। हे (पवमान) सर्व व्यापक, परम पावन (गोनाम् धाम पवसे) तू अपनी किरणों के तेज के तुल्य अपना ज्ञान वाणियों का तेज प्रदान कर। तू ही (जज्ञानः) प्रकट होकर (सूर्यम् अर्कैः पिन्वः) सूर्य को अपने तेजों से पूर्ण करता है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः-१—३ वसिष्ठः। ४-६ इन्द्रप्रमतिर्वासिष्ठः। ७–९ वृषगणो वासिष्ठः। १०–१२ मन्युर्वासिष्ठः। १३-१५ उपमन्युर्वासिष्ठः। १६-१८ व्याघ्रपाद्वासिष्ठः। १९-२१ शक्तिर्वासिष्ठः। २२–२४ कर्णश्रुद्वासिष्ठः। २५—२७ मृळीको वासिष्ठः। २८–३० वसुक्रो वासिष्ठः। ३१–४४ पराशरः। ४५–५८ कुत्सः। पवमानः सोमो देवता ॥ छन्द:– १, ६, १०, १२, १४, १५, १९, २१, २५, २६, ३२, ३६, ३८, ३९, ४१, ४६, ५२, ५४, ५६ निचृत् त्रिष्टुप्। २-४, ७, ८, ११, १६, १७, २०, २३, २४, ३३, ४८, ५३ विराट् त्रिष्टुप्। ५, ९, १३, २२, २७–३०, ३४, ३५, ३७, ४२–४४, ४७, ५७, ५८ त्रिष्टुप्। १८, ४१, ५०, ५१, ५५ आर्ची स्वराट् त्रिष्टुप्। ३१, ४९ पादनिचृत् त्रिष्टुप्। ४० भुरिक् त्रिष्टुप्। अष्टापञ्चाशदृचं सूक्तम्॥

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    विषय

    गानां धाम पवसे

    पदार्थ

    हे सोम ! (यत्) = जब (पूतः) = पवित्र किया हुआ तू (अव्यान्) = रक्षण करनेवाले (वारान्) = उत्तम पुरुषों को (अत्येषि) = अतिशयेन प्राप्त होता है, तो (ते) = तेरी (मधुमती:) = माधुर्य को लिये हुए (धाराः) = धारण शक्तियाँ (प्रासृग्रन्) = अतिशयेन उत्पन्न की जाती हैं। तू उन (अव्य) = वासनाओं से अपना रक्षण करनेवाले पुरुषों को मधुर जीवन वाला बनाता है । (पवमान) = हे पवित्र करनेवाले सोम ! तू (गोनाम्) = इन्द्रियों के धाम तेज को (पवसे) = प्राप्त कराता है सब इन्द्रियों को यह सोम ही शक्तिशाली बनाता है। (जज्ञान:) = प्रादुर्भूत होता हुआ, हे सोम ! तू (अर्कैः) = अपने स्तुत्य तेजों से (सूर्यम्) = ज्ञानसूर्य को (अपिन्व:) = पूरित करता है।

    भावार्थ

    भावार्थ- सुरक्षित सोम जीवन को मधुर बनाता है, इन्द्रियों को तेजस्वी करता है, ज्ञान सूर्य को दीप्त करता है।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    O Soma, the honeyed showers of your gifts radiate and flow when you, with your power and purity, move to your favourite choices well protective and well protected. Indeed, pure and purifying, you move and bless the treasure homes of light, and, self-manifesting and generative, you vest the sun with the light that illuminates the days.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात परमात्म्याच्या ज्योतीचे वर्णन आहे. अर्थात, परमात्म्याच्या दिव्य ज्योती सर्व पदार्थांना पवित्र करतात. ॥३१॥

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