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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 97 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 97/ मन्त्र 26
    ऋषिः - मृळीको वासिष्ठः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    दे॒वा॒व्यो॑ नः परिषि॒च्यमा॑ना॒: क्षयं॑ सु॒वीरं॑ धन्वन्त॒ सोमा॑: । आ॒य॒ज्यव॑: सुम॒तिं वि॒श्ववा॑रा॒ होता॑रो॒ न दि॑वि॒यजो॑ म॒न्द्रत॑माः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    दे॒वऽअ॒व्यः॑ । नः॒ । प॒रि॒ऽसि॒च्यमा॑नाः । क्षय॑म् । सु॒ऽवीर॑म् । ध॒न्व॒न्तु॒ । सोमाः॑ । आ॒ऽय॒ज्यवः॑ । सु॒ऽम॒तिम् । वि॒श्वऽवा॑राः । होता॑रः । न । दि॒वि॒ऽयजः॑ । म॒न्द्रऽत॑माः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    देवाव्यो नः परिषिच्यमाना: क्षयं सुवीरं धन्वन्त सोमा: । आयज्यव: सुमतिं विश्ववारा होतारो न दिवियजो मन्द्रतमाः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    देवऽअव्यः । नः । परिऽसिच्यमानाः । क्षयम् । सुऽवीरम् । धन्वन्तु । सोमाः । आऽयज्यवः । सुऽमतिम् । विश्वऽवाराः । होतारः । न । दिविऽयजः । मन्द्रऽतमाः ॥ ९.९७.२६

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 97; मन्त्र » 26
    अष्टक » 7; अध्याय » 4; वर्ग » 16; मन्त्र » 1
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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (देवाव्यः) ज्ञानद्वारेण विदुषां तर्पकः परमात्मा (आयज्यवः) यजनशीलः (विश्ववाराः) सर्वैर्वरणीयः (होतारः, न) होतार इव (दिवियजः) द्युलोके सूर्यादिदिव्यतेजसा यज्ञकर्ता (मन्द्रतमाः) आनन्दस्वरूपः (परिषिच्यमानाः) स परमात्मा उपासितः सन् (सोमाः) सौम्यस्वभावो भवन् (सुवीरं) सुवीरसन्तानं (क्षयं) निवासस्थानं च (धन्वन्तु) ददातु ॥२६॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (देवाव्यः) विद्वानों को ज्ञान द्वारा तृप्त करनेवाला परमात्मा और (आयज्यवः) यजनशील (विश्ववाराः) सबका उपास्यदेव (होतारः) होताओं के (न) समान (दिवियजः) द्युलोक में सूर्य्यादि अग्निपुञ्जों के द्वारा यज्ञ करनेवाला (मन्द्रतमाः) आनन्दस्वरूप, उक्तगुणसम्पन्न परमात्मा (परिषिच्यमानाः) उपासना किया हुआ (सोमाः) सौम्यस्वरूपभाव परमात्मा (सुवीरम्) सुवीर सन्तान और (क्षयम्) निवासस्थान (धन्वन्तु) दे। यहाँ बहुवचन आदर के लिये है ॥२६॥

    भावार्थ

    सुसम्पत्ति तथा सुन्दर सन्तान एकमात्र पुण्य कर्म्मों से प्राप्त होती है, इसलिये पुण्यात्मा बनकर पुण्यों का सञ्चय करना चाहिये ॥२६॥

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    विषय

    उत्तम शासक विद्वान् के कर्त्तव्य। पक्षान्तर में परमेश्वर का वर्णन।

    भावार्थ

    (देवाव्यः न) देवों, विद्वानों, शुभ गुणों से प्रेम करने, उनकी रक्षा करने वाले, (परि-सिच्यमानाः) सब और अभिषिक्त होते हुए वा बढ़ते हुए, (सोमाः) उत्तम विद्वान् प्रशासक, उपदेष्टा जन, (सु-वीरं) उत्तम वीरों से युक्त, उत्तम पुत्रों से युक्त (क्षयं) ऐश्वर्य और गृह को (धन्वन्तु) प्राप्त हों। (आ यज्यवः) सब ओर से आ २ कर एकत्र होकर, सत्संग करने वाले (विश्व-वाराः) सर्वश्रेष्ठ, (हो तारः) सुखप्रद (दिवि-यजः) ज्ञानप्रकाश के निमित्त वा राजसभा भवन में एकत्र होकर और (मन्द्र-तमाः) अति हर्पयुक्त सबको प्रसन्न करने वाले होकर (सु-मातम्) शुभ मति, उत्तम ज्ञान को (धन्वन्तु) प्राप्त हों और प्रदान करें।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः-१—३ वसिष्ठः। ४-६ इन्द्रप्रमतिर्वासिष्ठः। ७–९ वृषगणो वासिष्ठः। १०–१२ मन्युर्वासिष्ठः। १३-१५ उपमन्युर्वासिष्ठः। १६-१८ व्याघ्रपाद्वासिष्ठः। १९-२१ शक्तिर्वासिष्ठः। २२–२४ कर्णश्रुद्वासिष्ठः। २५—२७ मृळीको वासिष्ठः। २८–३० वसुक्रो वासिष्ठः। ३१–४४ पराशरः। ४५–५८ कुत्सः। पवमानः सोमो देवता ॥ छन्द:– १, ६, १०, १२, १४, १५, १९, २१, २५, २६, ३२, ३६, ३८, ३९, ४१, ४६, ५२, ५४, ५६ निचृत् त्रिष्टुप्। २-४, ७, ८, ११, १६, १७, २०, २३, २४, ३३, ४८, ५३ विराट् त्रिष्टुप्। ५, ९, १३, २२, २७–३०, ३४, ३५, ३७, ४२–४४, ४७, ५७, ५८ त्रिष्टुप्। १८, ४१, ५०, ५१, ५५ आर्ची स्वराट् त्रिष्टुप्। ३१, ४९ पादनिचृत् त्रिष्टुप्। ४० भुरिक् त्रिष्टुप्। अष्टापञ्चाशदृचं सूक्तम्॥

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    विषय

    देवाव्यः [सोमाः]

    पदार्थ

    (देवाव्य:) = देववृत्ति के व्यक्तियों को प्रीणित करनेवाले (नः) = हमारे (परिषिच्यमाना:) = शरीर में चारों ओर सींचे जाते हुए (सोमाः) = सोमकण (सुवीरं क्षयम्) = उत्तम वीर पुत्रों वाले गृह को (धन्वन्तु) = प्राप्त करायें। सोमरक्षण से सदा उत्तम वीर सन्तान प्राप्त होते हैं। (सुमतिं आयज्यवः) = ये सोम शुभ बुद्धि को हमारे साथ संगत करनेवाले हैं। (विश्ववाराः) = सब वरणीय वस्तुओं को प्राप्त करानेवाले हैं। (होतारः न) = ये होताओं के समान हैं, वस्तुतः ये ही जीवनयज्ञ को चलानेवाले हैं । (दिवियज:) = प्रकाश में हमारा सम्पर्क करानेवाले व (मन्द्रतमाः) = स्तुत्यतम हैं, अथवा अधिक से अधिक आह्लाद को प्राप्त करानेवाले हैं ।

    भावार्थ

    भावार्थ- सुरक्षित सोम 'वीर सन्तानों वाले गृह को, सुमति को व ज्ञान के प्रकाश और आनन्द को ' प्राप्त करानेवाले हैं।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    May showers of the power and grace of Soma, generous to the divinities of nature and nobilities of humanity, served, adored and sanctifying, bless our peaceful home with noble heroes of action. Creative they are by nature’s yajna, overflowing with universal light and intelligence like yajakas in the regions of the sun where universal Soma yajna is going on, and they are the most inspiring and most beatific.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    सुसंपत्ती व सुंदर संतान फक्त पुण्यकर्मांनी प्राप्त होतात त्यासाठी पुण्यात्मा बनून पुण्याचा संचय केला पाहिजे. ॥२६॥

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