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अथर्ववेद - काण्ड 12/ सूक्त 5/ मन्त्र 23
सूक्त - अथर्वाचार्यः
देवता - ब्रह्मगवी
छन्दः - याजुषी त्रिष्टुप्
सूक्तम् - ब्रह्मगवी सूक्त
मे॒निर्दु॒ह्यमा॑ना शीर्ष॒क्तिर्दु॒ग्धा ॥
स्वर सहित पद पाठमे॒नि: । दु॒ह्यमा॑ना । शी॒र्ष॒क्ति: । दु॒ग्धा ॥७.१२॥
स्वर रहित मन्त्र
मेनिर्दुह्यमाना शीर्षक्तिर्दुग्धा ॥
स्वर रहित पद पाठमेनि: । दुह्यमाना । शीर्षक्ति: । दुग्धा ॥७.१२॥
अथर्ववेद - काण्ड » 12; सूक्त » 5; मन्त्र » 23
भाषार्थ -
(दुह्यमाना) दोही जाती हुई, तथा (दुग्धा) दोही गई (मेनिः, शीर्षक्तिः) हिंसक वज्ररूप तथा शिरोरोग रूप है।
टिप्पणी -
[मन्त्र २३ का सम्बन्ध मन्त्र २२ के वर्णन के साथ समझना चाहिये। मन्त्र २२ में गौ को कर्णरुग्णा तथा प्रमेहरुग्णा दर्शाया है। ऐसी गौ का दूध "हिंसकवज्ररूप" तथा सिर के रोगों को पैदा करता है। अतः ऐसी का दूध त्याज्य है।]