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अथर्ववेद - काण्ड 12/ सूक्त 5/ मन्त्र 26
सूक्त - अथर्वाचार्यः
देवता - ब्रह्मगवी
छन्दः - साम्न्युष्णिक्
सूक्तम् - ब्रह्मगवी सूक्त
अ॒घवि॑षा नि॒पत॑न्ती॒ तमो॒ निप॑तिता ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒घऽवि॑षा । नि॒ऽपत॑न्ती । तम॑: । निऽप॑तिता ॥७.१५॥
स्वर रहित मन्त्र
अघविषा निपतन्ती तमो निपतिता ॥
स्वर रहित पद पाठअघऽविषा । निऽपतन्ती । तम: । निऽपतिता ॥७.१५॥
अथर्ववेद - काण्ड » 12; सूक्त » 5; मन्त्र » 26
भाषार्थ -
(निपतन्ती) वध के पश्चात् गिरती हुई गौ (अघविषा) हत्यारा विष रूप है, और (निपतिता) गिर गई (समः) अन्धकार रूप है।
टिप्पणी -
[गौ हत्यारे को, गोरक्षक लोग, हत्यारे-विष द्वारा मार डालें, और उसे अन्धेरी कोठरी में बन्द रखें,–ऐसा विधान मन्त्र में है। जब तक हत्यारे के वध का प्रबन्ध नहीं होता तब तक गो हत्यारे को अन्धेरी कोठरी में बन्द रखना चाहिये]।