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अथर्ववेद - काण्ड 12/ सूक्त 5/ मन्त्र 32
सूक्त - अथर्वाचार्यः
देवता - ब्रह्मगवी
छन्दः - साम्नी गायत्री
सूक्तम् - ब्रह्मगवी सूक्त
अ॒घं प॒च्यमा॑ना दुः॒ष्वप्न्यं॑ प॒क्वा ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒घम् । प॒च्यमा॑ना । दु॒:ऽस्वप्न्य॑म् । प॒क्वा ॥८.५॥
स्वर रहित मन्त्र
अघं पच्यमाना दुःष्वप्न्यं पक्वा ॥
स्वर रहित पद पाठअघम् । पच्यमाना । दु:ऽस्वप्न्यम् । पक्वा ॥८.५॥
अथर्ववेद - काण्ड » 12; सूक्त » 5; मन्त्र » 32
भाषार्थ -
(पच्यमाना) मांसरूप में पकाई जाती हुई गौ (अघम्) पाप सूचक है, (पक्वा) पकी हुई (दुःष्वप्न्यम्) बुरे स्वप्नों में दुःखदायी है।
टिप्पणी -
[गौ के मांस को पकाना पाप है, और परिणाम में दुःखदायी है, दुःष्वप्न्यों के सदृश। दुःस्वप्न दुःखदायी होते हैं, क्योंकि ये भय, कम्पन देते और निद्रा के विघातक हो जाते हैं]।