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  • अथर्ववेद - काण्ड 12/ सूक्त 5/ मन्त्र 20
    सूक्त - अथर्वाचार्यः देवता - ब्रह्मगवी छन्दः - प्राजापत्यानुष्टुप् सूक्तम् - ब्रह्मगवी सूक्त

    क्षु॒रप॑वि॒रीक्ष॑माणा॒ वाश्य॑माना॒भि स्फू॒र्जति ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    क्षु॒रऽप॑वि: । ईक्ष॑माणा । वाश्य॑माना। अ॒भि। स्फू॒र्ज॒ति॒ ॥७.९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    क्षुरपविरीक्षमाणा वाश्यमानाभि स्फूर्जति ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    क्षुरऽपवि: । ईक्षमाणा । वाश्यमाना। अभि। स्फूर्जति ॥७.९॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 12; सूक्त » 5; मन्त्र » 20

    भाषार्थ -
    (ईक्षमाणा) [घातक की ओर] दृष्टि करती हुई (क्षुरपविः) मानो छुरावज्र है, (वाश्यमाना) लड़ाई का सा शब्द करती हुई (अभि स्फूर्जति) मानो प्रत्यक्षरूप में बिजुली कड़कती है।

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