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अथर्ववेद - काण्ड 12/ सूक्त 5/ मन्त्र 46
सूक्त - अथर्वाचार्यः
देवता - ब्रह्मगवी
छन्दः - भुरिक्साम्न्यनुष्टुप्
सूक्तम् - ब्रह्मगवी सूक्त
य ए॒वं वि॒दुषो॑ ब्राह्म॒णस्य॑ क्ष॒त्रियो॒ गामा॑द॒त्ते ॥
स्वर सहित पद पाठय: । ए॒वम् । वि॒दुष॑: । ब्रा॒ह्म॒णस्य॑ । क्ष॒त्रिय॑: । गाम् । आ॒ऽद॒त्ते ॥९.८॥
स्वर रहित मन्त्र
य एवं विदुषो ब्राह्मणस्य क्षत्रियो गामादत्ते ॥
स्वर रहित पद पाठय: । एवम् । विदुष: । ब्राह्मणस्य । क्षत्रिय: । गाम् । आऽदत्ते ॥९.८॥
अथर्ववेद - काण्ड » 12; सूक्त » 5; मन्त्र » 46
भाषार्थ -
(यः क्षत्रियः) जो क्षत्रिय राजा कि (एवम् विदुषः) इस प्रकार के विद्वान् (ब्राह्मणस्य) ब्रह्मज्ञ और वेदज्ञ नेता की (गाम्) गौ अर्थात् गो जाति को [सुरक्षित करने के अधिकार को] (आदते) छीन लेता है।
टिप्पणी -
[आदत्ते = आदित्यः कस्मात् आदत्ते भासं ज्योतिषाम् (नक्षत्राणाम्); निरु० २।४।१३।। १२ से ४६ तक के मन्त्रों में गोरक्षा का वर्णन हुआ है। क्षत्रिय अर्थात् राजा गोरक्षा नहीं चाहता। परन्तु ब्रह्मज्ञ और वेदज्ञ व्यक्ति गो जाति को ब्रह्म की राष्ट्रोपयोगी विशिष्ट सन्तान जान कर, और गो रक्षा को वेदानुकूल जान कर, गोरक्षान्दोलन करता है। परिणामतः क्षत्रिय राजा का हनन होता है। हत हो जाने पर उस की जो दशा होती है, उस का वर्णन ४७ से ७३ तक के मन्त्रों में हुआ है। गौ स्वस्थ हो या रुग्ण उसकी रक्षा करना और उस के मांस को न खाने देना- यह वैदिक धर्म है। इसके लिये देखो यजु० १३।४३; ३०।१७; ऋक् ८।१०१।१५; १०।८७।१६ तथा अथर्व० १।१६।४]।