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अथर्ववेद - काण्ड 12/ सूक्त 5/ मन्त्र 49
सूक्त - अथर्वाचार्यः
देवता - ब्रह्मगवी
छन्दः - प्राजापत्यानुष्टुप्
सूक्तम् - ब्रह्मगवी सूक्त
क्षि॒प्रं वै तस्य॒ वास्तु॑षु॒ वृकाः॑ कुर्वत ऐल॒बम् ॥
स्वर सहित पद पाठतस्य॑ । वास्तु॑षु । वृका॑: । कु॒र्व॒ते॒ । ऐ॒ल॒बम् ॥१०.३॥
स्वर रहित मन्त्र
क्षिप्रं वै तस्य वास्तुषु वृकाः कुर्वत ऐलबम् ॥
स्वर रहित पद पाठतस्य । वास्तुषु । वृका: । कुर्वते । ऐलबम् ॥१०.३॥
अथर्ववेद - काण्ड » 12; सूक्त » 5; मन्त्र » 49
भाषार्थ -
(क्षिप्रम् वै) निश्चय से शीघ्र ही (तस्य) उस क्षत्रिय के (वास्तुषु) घरों में (वृकाः) भेड़िये (ऐलवम्, कुर्वते) विलास करने लगते हैं।
टिप्पणी -
[इन मन्त्रों में क्षत्रिय राजा के मारे जाने का निर्देश किया है। गोरक्षा के विरोधी राजा के मारे जाने का वर्णन राष्ट्र में मुखिया होने के कारण हुआ है। अथवा यह द्वन्द्व युद्ध प्रतीत होता है। गोरक्षा के विरोधी राजा के मारे जाने पर प्रजा स्वयमेव गोरक्षा के पक्ष में हो ही जायगी। इस द्वन्द्वयुद्ध के कारण न तो प्रजा का विनाश होता है, न राष्ट्रिय सम्पत्ति का। ऐसे द्वन्द्व युद्ध महाभारत के काल में भी हुए हैं, जैसे कि भीम और जरासन्ध का युद्ध, भीम और दुर्योधन का, तथा कृष्ण और कंस का युद्ध]