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अथर्ववेद - काण्ड 12/ सूक्त 5/ मन्त्र 35
सूक्त - अथर्वाचार्यः
देवता - ब्रह्मगवी
छन्दः - भुरिक्साम्न्यनुष्टुप्
सूक्तम् - ब्रह्मगवी सूक्त
अभू॑तिरुपह्रि॒यमा॑णा॒ परा॑भूति॒रुप॑हृता ॥
स्वर सहित पद पाठअभू॑ति: । उ॒प॒ऽह्रि॒यमा॑णा । परा॑ऽभूति: । उप॑ऽहृता ॥८.८॥
स्वर रहित मन्त्र
अभूतिरुपह्रियमाणा पराभूतिरुपहृता ॥
स्वर रहित पद पाठअभूति: । उपऽह्रियमाणा । पराऽभूति: । उपऽहृता ॥८.८॥
अथर्ववेद - काण्ड » 12; सूक्त » 5; मन्त्र » 35
भाषार्थ -
(उपह्रियमाणा) गोमांस रूप में समीप लाई जा रही गौ (अभूतिः) शारीरिक विभूति का नाश करती, और (उपहृता) समीप लाई गई (पराभूतिः) पराभव करती है।
टिप्पणी -
[गौमांस द्वारा शारीरिक विभूति नष्ट हो जाती है, और व्यक्ति रोगों द्वारा पराभूत हो जाता है]।