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अथर्ववेद - काण्ड 12/ सूक्त 5/ मन्त्र 47
सूक्त - अथर्वाचार्यः
देवता - ब्रह्मगवी
छन्दः - प्राजापत्यानुष्टुप्
सूक्तम् - ब्रह्मगवी सूक्त
क्षि॒प्रं वै तस्या॒हन॑ने॒ गृध्राः॑ कुर्वत ऐल॒बम् ॥
स्वर सहित पद पाठक्षि॒प्रम् । वै । तस्य॑ । आ॒ऽहन॑ने । गृध्रा॑: । कु॒र्व॒ते॒ । ऐ॒ल॒बम् ॥१०.१॥
स्वर रहित मन्त्र
क्षिप्रं वै तस्याहनने गृध्राः कुर्वत ऐलबम् ॥
स्वर रहित पद पाठक्षिप्रम् । वै । तस्य । आऽहनने । गृध्रा: । कुर्वते । ऐलबम् ॥१०.१॥
अथर्ववेद - काण्ड » 12; सूक्त » 5; मन्त्र » 47
भाषार्थ -
(तस्य) उस क्षत्रिय राजा के (आहनने) हनन हो जाने पर (क्षिप्रं वै) निश्चय से शीघ्र (गृध्राः) गीध (ऐलवम्) विलास (कुर्वते) करते हैं।
टिप्पणी -
[ऐसे क्षत्रिय राजा को मार देने पर उस के शरीर को खाने के लिये गीध इकट्ठे हो जाते हैं]