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अथर्ववेद - काण्ड 12/ सूक्त 5/ मन्त्र 51
सूक्त - अथर्वाचार्यः
देवता - ब्रह्मगवी
छन्दः - प्राजापत्यानुष्टुप्
सूक्तम् - ब्रह्मगवी सूक्त
छि॒न्ध्या च्छि॑न्धि॒ प्र च्छि॒न्ध्यपि॑ क्षापय क्षा॒पय॑ ॥
स्वर सहित पद पाठछि॒न्धि॒ । आ । छि॒न्धि॒ । प्र । छि॒न्धि॒ । अपि॑ । क्षा॒प॒य॒ । क्षा॒पय॑ ॥१०.५॥
स्वर रहित मन्त्र
छिन्ध्या च्छिन्धि प्र च्छिन्ध्यपि क्षापय क्षापय ॥
स्वर रहित पद पाठछिन्धि । आ । छिन्धि । प्र । छिन्धि । अपि । क्षापय । क्षापय ॥१०.५॥
अथर्ववेद - काण्ड » 12; सूक्त » 5; मन्त्र » 51
भाषार्थ -
(छिन्धि) काट, (आच्छिन्धि) सब ओर से काट (प्रच्छिन्धि) पूर्णतया काट, (अपि क्षापय क्षापय) तथा मार, मार डाल।
टिप्पणी -
[राजा के मारे जाने और जला देने के पश्चात् यदि गोमांस भक्षक युद्ध के लिए फिर खड़े हो जांय, तो गोरक्षा का पक्षपाती-नेता निजानुयाइयों द्वारा उन से युद्ध करता हुआ, अनुयाइयों को मन्त्र द्वारा प्रोत्साहित करता और आज्ञा देता है]।