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  • अथर्ववेद - काण्ड 12/ सूक्त 5/ मन्त्र 42
    सूक्त - अथर्वाचार्यः देवता - ब्रह्मगवी छन्दः - आसुरी बृहती सूक्तम् - ब्रह्मगवी सूक्त

    सर्वा॒स्याङ्गा॒ पर्वा॒ मूला॑नि वृश्चति ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सर्वा॑ । अ॒स्य॒ । अङ्गा॑ । पर्वा॑ । मूला॑नि। वृ॒श्च॒ति॒ ॥९.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सर्वास्याङ्गा पर्वा मूलानि वृश्चति ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सर्वा । अस्य । अङ्गा । पर्वा । मूलानि। वृश्चति ॥९.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 12; सूक्त » 5; मन्त्र » 42

    भाषार्थ -
    (अस्य) इस ब्रह्मज्ञ के (सर्वा = सर्वाणि; अङ्गा = अङ्गानि) सब अङ्गों को, (पर्वा=पर्वाणि) जोड़ों को, (मूलानि) मूलों को (वृश्चति) ब्रह्मगवी काट देती है।

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