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  • अथर्ववेद - काण्ड 12/ सूक्त 5/ मन्त्र 27
    सूक्त - अथर्वाचार्यः देवता - ब्रह्मगवी छन्दः - आर्च्युष्णिक् सूक्तम् - ब्रह्मगवी सूक्त

    अ॑नु॒गच्छ॑न्ती प्रा॒णानुप॑ दासयति ब्रह्मग॒वी ब्र॑ह्म॒ज्यस्य॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒नु॒ऽगच्छ॑न्ती । प्रा॒णान् । उप॑ । दा॒स॒य॒ति॒ । ब्र॒ह्म॒ऽग॒वी । ब्र॒ह्म॒ऽज्यस्य॑ ॥७.१६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अनुगच्छन्ती प्राणानुप दासयति ब्रह्मगवी ब्रह्मज्यस्य ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अनुऽगच्छन्ती । प्राणान् । उप । दासयति । ब्रह्मऽगवी । ब्रह्मऽज्यस्य ॥७.१६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 12; सूक्त » 5; मन्त्र » 27

    भाषार्थ -
    (ब्रह्मगवी) ब्रह्म अर्थात् परमेश्वर की गौ या गोजाति (ब्रह्मज्यस्य) ब्राह्मण को हानि पहुंचाने वाले मृत क्षत्रिय का (अनुगच्छन्ती) अनुगमन करती हुई, पीछा करती हुई, (प्राणान्) प्राणों को (उप दासयति) विनष्ट करती है।

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