Loading...

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 12/ सूक्त 5/ मन्त्र 52
    सूक्त - अथर्वाचार्यः देवता - ब्रह्मगवी छन्दः - प्राजापत्यानुष्टुप् सूक्तम् - ब्रह्मगवी सूक्त

    आ॒ददा॑नमाङ्गिरसि ब्रह्म॒ज्यमुप॑ दासय ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ॒ऽददा॑नम् । आ॒ङ्गि॒र॒सि॒ । ब्र॒ह्म॒ऽज्यम् । उप॑ । दा॒स॒य॒ ॥१०.६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आददानमाङ्गिरसि ब्रह्मज्यमुप दासय ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आऽददानम् । आङ्गिरसि । ब्रह्मऽज्यम् । उप । दासय ॥१०.६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 12; सूक्त » 5; मन्त्र » 52

    भाषार्थ -
    (आङ्गिरसि) अङ्गो=अङ्गी अर्थात् शरीर के लिये रस-प्रदायिनि ओषधिरूप हे गोजाति ! (आददानम्) गोरक्षा का अधिकार छीनने वाले, (ब्रह्मज्यम्) ब्रह्मज्ञ और वेदज्ञ ब्राह्मण-नेता के जीवन को हानि पहुंचाने वाले का (उप दासय) क्षय कर।

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top