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अथर्ववेद - काण्ड 12/ सूक्त 5/ मन्त्र 39
सूक्त - अथर्वाचार्यः
देवता - ब्रह्मगवी
छन्दः - साम्नी पङ्क्तिः
सूक्तम् - ब्रह्मगवी सूक्त
तस्या॑ आ॒हन॑नं कृ॒त्या मे॒निरा॒शस॑नं वल॒ग ऊब॑ध्यम् ॥
स्वर सहित पद पाठतस्या॑: । आ॒ऽहन॑नम् । कृ॒त्या । मे॒नि: । आ॒ऽशस॑नम्। व॒ल॒ग: । ऊब॑ध्यम् ॥९.१॥
स्वर रहित मन्त्र
तस्या आहननं कृत्या मेनिराशसनं वलग ऊबध्यम् ॥
स्वर रहित पद पाठतस्या: । आऽहननम् । कृत्या । मेनि: । आऽशसनम्। वलग: । ऊबध्यम् ॥९.१॥
अथर्ववेद - काण्ड » 12; सूक्त » 5; मन्त्र » 39
भाषार्थ -
(तस्याः) उस गौ की (आहननम्) हत्या (कृत्या) कृत्यारूप है, (आशसनम्) काटना (मेनिः) वज्ररूप और (ऊबध्यम्) पेट का मल (वलगः) घेरा डाल कर चलने वाला अस्त्ररूप है।
टिप्पणी -
[कृत्या= कृती छेदने; काटने का शास्त्रविशेष। मेनिः वज्रनाम (निघं० २।२०) वलगः = वल (संवरणे) + ग (गच्छति), जो अस्त्र को फूट कर, घेरा डाल कर आगे-आगे बढ़ता जाता है। "वलग" भूमि में गाड़ा जाता है। यथा- "वलगं वा निचख्नुः" (अथर्व १०।१।१८)। अभिप्राय यह कि गौ की हत्या उसके काटने, और भय के कारण पेट के मल के निकल जाने पर, गोरक्षकः कृत्या आदि साधनों द्वारा घातक पर आक्रमण करते हैं]