Sidebar
अथर्ववेद - काण्ड 12/ सूक्त 5/ मन्त्र 3
सूक्त - अथर्वाचार्यः
देवता - ब्रह्मगवी
छन्दः - चतुष्पदा स्वराडुष्णिक्
सूक्तम् - ब्रह्मगवी सूक्त
स्व॒धया॒ परि॑हिता श्र॒द्धया॒ पर्यू॑ढा दी॒क्षया॑ गु॒प्ता य॒ज्ञे प्रति॑ष्ठिता लो॒को नि॒धन॑म् ॥
स्वर सहित पद पाठस्व॒धया॑ । परि॑ऽहिता । श्र॒ध्दया॑ । परि॑ऽऊढा। दी॒क्षया॑ । गु॒प्ता । य॒ज्ञे । प्रति॑ऽस्थिता । लो॒क: । नि॒ऽधन॑म् ॥५.३॥
स्वर रहित मन्त्र
स्वधया परिहिता श्रद्धया पर्यूढा दीक्षया गुप्ता यज्ञे प्रतिष्ठिता लोको निधनम् ॥
स्वर रहित पद पाठस्वधया । परिऽहिता । श्रध्दया । परिऽऊढा। दीक्षया । गुप्ता । यज्ञे । प्रतिऽस्थिता । लोक: । निऽधनम् ॥५.३॥
अथर्ववेद - काण्ड » 12; सूक्त » 5; मन्त्र » 3
भाषार्थ -
(स्वधया) निज धारण तथा पोषण शक्ति से (परिहिता) सब के लिये हितकारिणी, (श्रद्धया) श्रद्धावृत्ति द्वारा (पर्यूढा) पूर्णतया धारण की गई, (दीक्षया) वैदिकधर्म में दीक्षा के द्वारा (गुप्ता) सुरक्षित हुई, (यज्ञे) यज्ञियकर्मों में (प्रतिष्ठिता) प्रतिष्ठित हुई ब्रह्मगवी है। (लोकः) इहलोक, परलोक तथा ब्रह्मलोक के ज्ञान-प्रदान में (निधनम्) ब्रह्मगवी अर्थात् ब्रह्मप्रोक्त वेदवाणी का पर्यवसान है।
टिप्पणी -
[स्वधा = स्व +धा (धारणपोषणयोः), अर्थात् वेदवाणी में जो धारण और पोषण करने की निज स्वाभाविक शक्ति है, उस द्वारा वह सब के लिये हितकारिणी है। पर्यूढा= परि + ऊढा (Borne, आप्टे)। प्रतिष्ठिता= पद पाठ में "प्रति, स्थिताः" ऐसा बहुवचनान्त पाठ है। सम्भवतः इस बहुवचनान्त की दृष्टि से ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका (वेदोक्तधर्म-विषय) में महर्षि दयानन्द ने मन्त्र १-३ में सर्वत्र बहुवचनान्त पद माने हों। निधनम् = सामगान में हिंकारः, प्रस्ताव, उद्गीथ, प्रतिहार तथा निधन, ये ५ रूप माने हैं। निधन का अर्थ है सामगान का पर्यवसान अर्थात् समाप्ति]