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अथर्ववेद - काण्ड 12/ सूक्त 5/ मन्त्र 37
सूक्त - अथर्वाचार्यः
देवता - ब्रह्मगवी
छन्दः - आसुर्यनुष्टुप्
सूक्तम् - ब्रह्मगवी सूक्त
अव॑र्तिर॒श्यमा॑ना॒ निरृ॑तिरशि॒ता ॥
स्वर सहित पद पाठअव॑र्ति: । अ॒श्यमा॑ना । नि:ऽऋ॑ति: । अ॒शि॒ता॥८.१०॥
स्वर रहित मन्त्र
अवर्तिरश्यमाना निरृतिरशिता ॥
स्वर रहित पद पाठअवर्ति: । अश्यमाना । नि:ऽऋति: । अशिता॥८.१०॥
अथर्ववेद - काण्ड » 12; सूक्त » 5; मन्त्र » 37
भाषार्थ -
गोमांसरूप में (अश्यमाना) खाई जाती हुई गौ (अवर्तिः) दरिद्रता पैदा करती, और (अशिता) खाई गई (निर्ऋतिः) कष्टोत्पादन करती है।
टिप्पणी -
[गोमांस के प्रचार से गोवंश के विनाश द्वारा दुग्ध आदि के अभाव से जीवन में दरिद्रता होती तथा जीवन कष्टप्रद होता है।]