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  • अथर्ववेद - काण्ड 12/ सूक्त 5/ मन्त्र 2
    सूक्त - अथर्वाचार्यः देवता - ब्रह्मगवी छन्दः - भुरिक्साम्न्यनुष्टुप् सूक्तम् - ब्रह्मगवी सूक्त

    स॒त्येनावृ॑ता श्रि॒या प्रावृ॑ता॒ यश॑सा॒ परी॑वृता ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स॒त्येन॑ । आऽवृ॑ता । श्रि॒या । प्रावृ॑ता । यश॑सा। परि॑ऽवृता॥५.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सत्येनावृता श्रिया प्रावृता यशसा परीवृता ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सत्येन । आऽवृता । श्रिया । प्रावृता । यशसा। परिऽवृता॥५.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 12; सूक्त » 5; मन्त्र » 2

    भाषार्थ -
    (सत्येन) सत्यज्ञान से (आवृता) आच्छादित, (श्रिया) सम्पत् से (प्रावृता) प्रकर्षरूप में ढकी हुई, तथा (यशसा) यश अर्थात् कीर्ति से (परीवृता) सब प्रकार से घिरी हुई ब्रह्मगवी अर्थात् वेदवाणी है।

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