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  • अथर्ववेद - काण्ड 12/ सूक्त 5/ मन्त्र 59
    सूक्त - अथर्वाचार्यः देवता - ब्रह्मगवी छन्दः - प्राजापत्यानुष्टुप् सूक्तम् - ब्रह्मगवी सूक्त

    मे॒निः श॑र॒व्या भवा॒घाद॒घवि॑षा भव ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    मे॒नि: । श॒र॒व्या᳡ । भ॒व॒ । अ॒घात् । अ॒घऽवि॑षा । भ॒व॒ ॥१०.१३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    मेनिः शरव्या भवाघादघविषा भव ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    मेनि: । शरव्या । भव । अघात् । अघऽविषा । भव ॥१०.१३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 12; सूक्त » 5; मन्त्र » 59

    भाषार्थ -
    [हे अघ्न्ये] तू (मेनिः) हिंसक वज्र, (शरव्या) विशीर्ण करने वाला शर समूह, तथा (अघात्) घातक पाप से (अघविषा) घातक विष (भव) होजा।

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