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  • अथर्ववेद - काण्ड 12/ सूक्त 5/ मन्त्र 24
    सूक्त - अथर्वाचार्यः देवता - ब्रह्मगवी छन्दः - आसुरी गायत्री सूक्तम् - ब्रह्मगवी सूक्त

    से॒दिरु॑प॒तिष्ठ॑न्ती मिथोयो॒धः परा॑मृष्टा ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    से॒दि: । उ॒प॒ऽतिष्ठ॑न्ती । मि॒थ॒:ऽयो॒ध: । परा॑ऽसृष्टा॥७.१३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सेदिरुपतिष्ठन्ती मिथोयोधः परामृष्टा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सेदि: । उपऽतिष्ठन्ती । मिथ:ऽयोध: । पराऽसृष्टा॥७.१३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 12; सूक्त » 5; मन्त्र » 24

    भाषार्थ -
    [ऐसी रुग्णा गौ] (उप तिष्ठन्ती) अन्य गौओं के स्थान में उपस्थित रहती हुई (सेदिः) अन्य गौओं की विनाशिका और उन में अवसाद पैदा करती है, (परामृष्टा) और छुई गई (मिथोयोधः) साथिन गौओं पर रोग, का संप्रहार करती है।

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