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  • अथर्ववेद - काण्ड 12/ सूक्त 5/ मन्त्र 45
    सूक्त - अथर्वाचार्यः देवता - ब्रह्मगवी छन्दः - आर्ची बृहती सूक्तम् - ब्रह्मगवी सूक्त

    अ॑वा॒स्तुमे॑न॒मस्व॑ग॒मप्र॑जसं करोत्यपरापर॒णो भ॑वति क्षी॒यते॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒वा॒स्तुम् । ए॒न॒म् । अस्व॑गम् । अप्र॑जसम् । क॒रो॒ति॒ । अ॒प॒रा॒ऽप॒र॒ण: । भ॒व॒ति॒ । क्षी॒यते॑ ॥९.७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अवास्तुमेनमस्वगमप्रजसं करोत्यपरापरणो भवति क्षीयते ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अवास्तुम् । एनम् । अस्वगम् । अप्रजसम् । करोति । अपराऽपरण: । भवति । क्षीयते ॥९.७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 12; सूक्त » 5; मन्त्र » 45

    भाषार्थ -
    इस क्षत्रिय राजा को (अवास्तुम्) घर से रहित, (अस्वगम्) सम्पत्ति से रहित, (अप्रजसम्) प्रजा तथा सन्तानों से रहित (करोति) गौ अर्थात् गो जाति कर देती है। (अपरापरणः) क्षत्रिय राजा किसी अपर व्यक्ति द्वारा भी पालन-पोषण से रहित (भवति) हो जाता है (क्षीयते) और क्षीण या नष्ट हो जाता है।

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