Sidebar
अथर्ववेद - काण्ड 12/ सूक्त 5/ मन्त्र 29
सूक्त - अथर्वाचार्यः
देवता - ब्रह्मगवी
छन्दः - आसुर्यनुष्टुप्
सूक्तम् - ब्रह्मगवी सूक्त
दे॑वहे॒तिर्ह्रि॒यमा॑णा॒ व्यृद्धिर्हृ॒ता ॥
स्वर सहित पद पाठदे॒व॒ऽहे॒ति: । ह्रि॒यमा॑णा । विऽऋ॑ध्दि: । हृ॒ता ॥८.२॥
स्वर रहित मन्त्र
देवहेतिर्ह्रियमाणा व्यृद्धिर्हृता ॥
स्वर रहित पद पाठदेवऽहेति: । ह्रियमाणा । विऽऋध्दि: । हृता ॥८.२॥
अथर्ववेद - काण्ड » 12; सूक्त » 5; मन्त्र » 29
भाषार्थ -
[बाण्टने के पश्चात्] (ह्रियमाना) ली जाती हुई (देव हेतिः) देवों का अस्त्र है, (हृता) ली गई (व्यृद्धिः) ऋद्धि का अभाव रूप है।
टिप्पणी -
[अभिप्राय यह कि गौमांस लिये जाने पर यदि राष्ट्र के विद्वानों या दिव्य कोटि के लोगों को इस बात का पता लग जाय तो वे भी प्रहार करने पर उद्यत हो जाते हैं, और गोओं के कम हो जाने पर दूध आदि के अभाव तथा कृषिकर्म में कठिनाई के कारण राष्ट्र की ऋद्धि क्षीण होती जाती है]