अथर्ववेद - काण्ड 18/ सूक्त 1/ मन्त्र 5
सूक्त - यम, मन्त्रोक्त
देवता - त्रिष्टुप्
छन्दः - अथर्वा
सूक्तम् - पितृमेध सूक्त
गर्भे॒ नु नौ॑जनि॒ता दम्प॑ती कर्दे॒वस्त्वष्टा॑ सवि॒ता वि॒श्वरू॑पः। नकि॑रस्य॒ प्र मि॑नन्तिव्र॒तानि॒ वेद॑ नाव॒स्य पृ॑थि॒वी उ॒त द्यौः ॥
स्वर सहित पद पाठगर्भे॑ । नु । नौ॒ । ज॒नि॒ता । दंप॑ती॒ इति॒ दम्ऽप॑ती । क्व॒ । दे॒व: । त्वष्टा॑ । स॒वि॒ता । वि॒श्वऽरू॑प: । नकि॑: । अ॒स्य॒ । प्र । मि॒न॒न्ति॒ । व्र॒तानि॑ । वेद॑ । नौ॒ । अ॒स्य । पृ॒थि॒वी । उ॒त । द्यौ: ॥१.५॥
स्वर रहित मन्त्र
गर्भे नु नौजनिता दम्पती कर्देवस्त्वष्टा सविता विश्वरूपः। नकिरस्य प्र मिनन्तिव्रतानि वेद नावस्य पृथिवी उत द्यौः ॥
स्वर रहित पद पाठगर्भे । नु । नौ । जनिता । दंपती इति दम्ऽपती । क्व । देव: । त्वष्टा । सविता । विश्वऽरूप: । नकि: । अस्य । प्र । मिनन्ति । व्रतानि । वेद । नौ । अस्य । पृथिवी । उत । द्यौ: ॥१.५॥
अथर्ववेद - काण्ड » 18; सूक्त » 1; मन्त्र » 5
भाषार्थ -
(जनिता) जन्मदाता, (त्वष्टा) नानारूपों और आकृतियों के निर्माता, (सविता) सर्वप्रेरक तथा (विश्वरूपः) विश्व को रूप देनेवाले परमेश्वर ने, (नु) निश्चय से, (गर्भे) मातृगर्भ में ही (नौ) हम दोनों को (दम्पती) जाया और पति (कः) कर दिया है। (देवः) वह दिव्य गुणोंवाला है, अतः हम दोनों को दम्पती करना उस की दिव्यता का ही परिणाम है (अस्य) इस परमेश्वर के (व्रतानि) किये कर्मो को (नकिः) नहीं कोई (प्र मिनन्ति) टाल सकते हैं। (नौ) हम दोनों के (अस्य) इस दाम्पत्यभाव को (पृथिवी उत द्यौः) पृथिवीलोक भी और द्युलोक भी (वेद) जानता है।
टिप्पणी -
[यम और यमी यतः जोड़िया भाई-बहिन हैं, अत: इन दोनों ने एक ही मातृगर्भ में सहवास किया है। इस हेतु यमी कहती है यम को कि हमारे जन्मदाता परमेश्वर ने ही हमें दम्पती रूप में कर दिया है। पृथिवी द्यौः = कवितारूप में पृथिवी और द्यौः को चेतन माना है। अथवा इन का अर्थ है पृथिवीवासी तथा द्युवासी। "तात्स्थ्यात् ताच्छब्द्यम्" यथा मञ्चाः क्रोशन्ति। अथवा गृहस्थ स्त्री तथा पुरुष। यथा- (अथर्व० १४।२।७१)। इस मन्त्र में "वर" अपने आप को द्यौः, तथा 'वधू' को पृथिवी कहता है]