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अथर्ववेद - काण्ड 18/ सूक्त 4/ मन्त्र 21
सूक्त - यम, मन्त्रोक्त
देवता - त्रिपदा भुरिक् महाबृहती
छन्दः - अथर्वा
सूक्तम् - पितृमेध सूक्त
अपू॒पवा॒नन्न॑वांश्च॒रुरेह सी॑दतु। लो॑क॒कृतः॑ पथि॒कृतो॑ यजामहे॒ ये दे॒वानां॑हु॒तभा॑गा इ॒ह स्थ ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒पू॒पऽवा॑न् । अन्न॑ऽवान् । च॒रु: । आ । इ॒ह । सी॒द॒तु॒ । लो॒क॒ऽकृत॑: । प॒थि॒ऽकृत॑: । य॒जा॒म॒हे॒ । ये । दे॒वाना॑म् । हु॒तऽभा॑गा: । इ॒ह । स्थ ॥४.२१॥
स्वर रहित मन्त्र
अपूपवानन्नवांश्चरुरेह सीदतु। लोककृतः पथिकृतो यजामहे ये देवानांहुतभागा इह स्थ ॥
स्वर रहित पद पाठअपूपऽवान् । अन्नऽवान् । चरु: । आ । इह । सीदतु । लोकऽकृत: । पथिऽकृत: । यजामहे । ये । देवानाम् । हुतऽभागा: । इह । स्थ ॥४.२१॥
अथर्ववेद - काण्ड » 18; सूक्त » 4; मन्त्र » 21
भाषार्थ -
(अपूपवान्) पूड़ों समेत, और (अन्नवान्) विविध अन्नों समेत (चरुः) भात आदि (इह) इस घर में, प्राजापत्ययाजी के जीवन-यज्ञ की समाप्ति के पश्चात् भी (आ सीदतु) विद्यमान रहे, शेष पूर्ववत्।
टिप्पणी -
[अन्नवान्=वेदों में कई प्रकार के अन्नों का वर्णन है। यथा—ब्रीहयः=चावल, यवाः=जौं, माषाः=उड़द, तिलाः=तिल, मुद्गाः=मूंग, खल्वाः=चने, प्रियङ्गवः=कंगुनी, अणवः=सूक्ष्म चावल, श्यामाकाः=सांक या समाः नीवाराः=बिना बोए उत्पन्न होनेवाला चावल, गोधूमाः=गेहूँ, मसूराः=मसूर, मसर (यजु० १८.१२)। इसी प्रकार कृष्टपच्याः=खेतों में पके हुए अन्न, तथा अकृष्टपच्याः=जंगलों में पके अन्न (यजुः १८.१४)।]