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अथर्ववेद - काण्ड 18/ सूक्त 4/ मन्त्र 77
सूक्त - यम, मन्त्रोक्त
देवता - दैवी जगती
छन्दः - अथर्वा
सूक्तम् - पितृमेध सूक्त
ए॒तत्ते॑ ततस्व॒धा ॥
स्वर सहित पद पाठए॒तत् । ते॒ । त॒त॒ । स्व॒धा ॥४.७७॥
स्वर रहित मन्त्र
एतत्ते ततस्वधा ॥
स्वर रहित पद पाठएतत् । ते । तत । स्वधा ॥४.७७॥
अथर्ववेद - काण्ड » 18; सूक्त » 4; मन्त्र » 77
भाषार्थ -
(तत) हे पिता! (एतत्) यह (ते) आपके लिए (स्वधा) स्वधान्न है, आत्म-धारण-पोषणकारी अन्न है।
टिप्पणी -
[तत=तात (लौकिक संस्कृत)। अंग्रेजी में Dad=father, a word used by children. Dad शब्द “तत” का विकृतरूप है। तत=पिता, ततामह=दादा; प्रततामह= परदादा। पितृयज्ञ श्राद्ध तथा पितृमेध में इन्हीं तीन का, अर्थात् पिता पितामह और प्रपितामह का सम्बन्ध होता है। प्रपितामह के पिता आदि का नहीं। १०० वर्षों की आयु की दृष्टि से श्राद्धकर्त्ता पुत्र के लिए इन्हीं तीन का जीवित रहना अधिक सम्भावित है। पञ्चमहायज्ञों में पितृयज्ञ है। ये यज्ञ विवाहित पुरुष को करने होते हैं। २४ वर्षों की आयु में स्नातक बनकर, २५ वें वर्ष में विवाह द्वारा सन्तानोत्पादन कर ब्रह्मचारी पिता बनता है। अपत्य की सन्तान हो जाने के समय इस नवपिता के पिता की आयु ५० वर्षों की, पितामह की ७५ वर्षों की, तथा प्रपितामह की १०० वर्षों की सम्भावित है। इससे प्रतीत होता है कि पितृयज्ञ आदि में इन तीनों के ही जीवित होने के कारण इन्हीं तीन का यजन अर्थात् सत्कार होता है।]