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अथर्ववेद - काण्ड 18/ सूक्त 4/ मन्त्र 57
सूक्त - यम, मन्त्रोक्त
देवता - अनुष्टुप्
छन्दः - अथर्वा
सूक्तम् - पितृमेध सूक्त
ये च॑ जी॒वा येच॑ मृ॒ता ये जा॒ता ये च॑ य॒ज्ञियाः॑। तेभ्यो॑ घृ॒तस्य॑ कु॒ल्यैतु॒ मधु॑धाराव्युन्द॒ती ॥
स्वर सहित पद पाठये । च॒ । जी॒वा: । ये । च॒ । मृ॒ता: । ये । जा॒ता: । ये । च॒ । य॒ज्ञिया॑: । तेभ्य॑: । घृ॒तस्य॑ । कु॒ल्या॑ । ए॒तु॒ । मधु॑ऽधारा । वि॒ऽउ॒द॒न्ती ॥४.५७॥
स्वर रहित मन्त्र
ये च जीवा येच मृता ये जाता ये च यज्ञियाः। तेभ्यो घृतस्य कुल्यैतु मधुधाराव्युन्दती ॥
स्वर रहित पद पाठये । च । जीवा: । ये । च । मृता: । ये । जाता: । ये । च । यज्ञिया: । तेभ्य: । घृतस्य । कुल्या । एतु । मधुऽधारा । विऽउदन्ती ॥४.५७॥
अथर्ववेद - काण्ड » 18; सूक्त » 4; मन्त्र » 57
भाषार्थ -
(ये च) जो (जीवाः) जीवित हैं, (ये च) और जो (मृताः) मर गया है, (ये) जो (जाताः) नवदीक्षित हुए हैं, (ये च) और जो पहिले से दीक्षित होकर हमारी पूजा और सत्कार के भाजन हैं, (तेभ्यः) उन सब पितरों के नाम (मधुधारा) मधुरधारा वाली, (व्युन्दती) और उन के खेतों तथा बागीचों को सींचती हुई (घृतस्य कुल्या) जल की छोटी नहर (एतु) प्रवाहित हो।
टिप्पणी -
[गृहस्थों का कर्तव्य है कि वे वनस्थ तथा संन्यस्त आश्रमियों के लिये जल की व्यवस्था करें। जीवितों और मृतों के बन्धु-बान्धव मिलकर इस निमित्त श्रमदान तथा धनदान करें। घृतस्य = घृतम् उदकनाम (निघं० १।१२)। कुल्या= कुलेन कुलैर्वा निर्मिता; A small canal; stream (आप्टे)। जाताः= जैसे कि द्विज या द्विजन्मा में "जन्" धातु का प्रयोग है, उसी दृष्टि से "जाताः" में "जन्" का प्रयोग जानना चाहिये, अर्थात् नवदीक्षा द्वारा पुनः नवीन जन्म लिये हुये। प्रसिद्धार्थ में "जाता" का अर्थ "मातृगर्भ से नवजात" करना होगा। इस अर्थ में नवजात बच्चों को भी "पितर" कहना हास्यास्पद होगा।]