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अथर्ववेद - काण्ड 18/ सूक्त 4/ मन्त्र 60
सूक्त - यम, मन्त्रोक्त
देवता - भुरिक् त्रिष्टुप्
छन्दः - अथर्वा
सूक्तम् - पितृमेध सूक्त
प्र वाए॒तीन्दु॒रिन्द्र॑स्य॒ निष्कृ॑तिं॒ सखा॒ सख्यु॒र्न प्र मि॑नाति संगि॒रः। मर्य॑इव॒ योषाः॒ सम॑र्षसे॒ सोमः॑ क॒लशे॑ श॒तया॑मना प॒था ॥
स्वर सहित पद पाठप्र । वै । ए॒ति॒ । इन्दु॑: । इन्द्र॑स्य । नि:ऽकृ॑तिम् । सखा॑ । सख्यु॑: । न । प्र । मि॒ना॒ति॒ । स॒म्ऽगि॒र: । मर्य॑:ऽइव । योषा॑: । सम् । अ॒र्ष॒से॒ । सोम॑: । क॒लशे॑ । श॒तऽया॑मना । प॒था ॥४.६०॥
स्वर रहित मन्त्र
प्र वाएतीन्दुरिन्द्रस्य निष्कृतिं सखा सख्युर्न प्र मिनाति संगिरः। मर्यइव योषाः समर्षसे सोमः कलशे शतयामना पथा ॥
स्वर रहित पद पाठप्र । वै । एति । इन्दु: । इन्द्रस्य । नि:ऽकृतिम् । सखा । सख्यु: । न । प्र । मिनाति । सम्ऽगिर: । मर्य:ऽइव । योषा: । सम् । अर्षसे । सोम: । कलशे । शतऽयामना । पथा ॥४.६०॥
अथर्ववेद - काण्ड » 18; सूक्त » 4; मन्त्र » 60
भाषार्थ -
(इन्दुः) चन्द्रसम शीतल प्रकाशवाला परमेश्वर (इन्द्रस्य) जीवात्मा के (निष्कृतिम्) पवित्र हृदय में (वै) निश्चय से (प्र एति) आ प्रकट होता है। (सखा) परमेश्वर-सखा (सख्युः) जीवात्म-सखा के साथ की गई (संगिरः) प्रतिज्ञा का (न प्रमिनाति) भंग नहीं करता। (इव) जैसे (मर्यः) पति (योषाः) निज पत्नी के प्रति गमन करता है, वैसे (सोमः) सर्वोत्पादक आप (शतयामना) सैकड़ों उपमार्गोंवाले (पथा) पथों द्वारा (कलशे) उपासक के हृदय-घट या शरीर घट में (सभर्षसे) सम्यक्तया प्राप्त हो जाते हैं। [शतयाममा =भक्तिमार्ग, ज्ञानमार्ग, ध्यानमार्ग, क्रियायोगमार्ग आदि उपमार्ग।]