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  • अथर्ववेद - काण्ड 18/ सूक्त 4/ मन्त्र 82
    सूक्त - पितरगण देवता - साम्नी बृहती छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - पितृमेध सूक्त

    नमो॑ वः पितरो॒भामा॑य॒ नमो॑ वः पितरो म॒न्यवे॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    नम॑: । व॒: । पि॒त॒र॒: । भामा॑य । नम॑: । व॒: । पि॒त॒र॒: । म॒न्यवे॑ ॥४.८२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    नमो वः पितरोभामाय नमो वः पितरो मन्यवे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    नम: । व: । पितर: । भामाय । नम: । व: । पितर: । मन्यवे ॥४.८२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 18; सूक्त » 4; मन्त्र » 82

    भाषार्थ -
    (पितरः) हे पितरो! (वः) आप की (भामाय) प्रभा=दीप्ति की प्राप्ति के लिए (नमः) हम आपको नम्रभाव से प्राप्त होते हैं। (पितरः) हे पितरो! (वः) आपके (मन्यवे) मनन-पूर्वक किये गये क्रोध की प्राप्ति के लिए (नमः) हम आपको नम्रभाव से प्राप्त होते हैं।

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