Loading...

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 18/ सूक्त 4/ मन्त्र 89
    सूक्त - चन्द्रमा देवता - पञ्चपदा पथ्यापङ्क्ति छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - पितृमेध सूक्त

    च॒न्द्रमा॑अ॒प्स्वन्तरा सु॑प॒र्णो धा॑वते दि॒वि। न वो॑ हिरण्यनेमयः प॒दं वि॑न्दन्तिविद्युतो वि॒त्तं मे॑ अ॒स्य रो॑दसी ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    च॒न्द्रमा॑: । अ॒प्ऽसु । अ॒न्त:। आ । सु॒ऽप॒र्ण: । धा॒व॒ते॒ । दि॒वि । न । व॒:। हि॒र॒ण्य॒ऽने॒म॒य॒: । प॒दम् । वि॒न्द॒न्ति॒ । वि॒ऽद्यु॒त॒: । वि॒त्तम् । मे॒ । अ॒स्य॒ । रो॒द॒सी॒ इति॑ ॥४.८९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    चन्द्रमाअप्स्वन्तरा सुपर्णो धावते दिवि। न वो हिरण्यनेमयः पदं विन्दन्तिविद्युतो वित्तं मे अस्य रोदसी ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    चन्द्रमा: । अप्ऽसु । अन्त:। आ । सुऽपर्ण: । धावते । दिवि । न । व:। हिरण्यऽनेमय: । पदम् । विन्दन्ति । विऽद्युत: । वित्तम् । मे । अस्य । रोदसी इति ॥४.८९॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 18; सूक्त » 4; मन्त्र » 89

    भाषार्थ -
    जैसे (चन्द्रमाः) चन्द्रमा (सुपर्णः) मानो उड़ता हुआ सा, (दिवि) सूर्य के प्रकाश में वर्तमान हुआ (अप्सु अन्तः) आकाश के भीतर (आ धावते) दौड़ता है, वैसे (चन्द्रमाः) मेरा मन (दिवि) मस्तिष्क में और (अप्सु अन्तः) रक्तमय जलों वाले हृदय में (सुपर्णः) विषयों की ओर उड़ता हुआ (आ धावते) दौड़ता है। हे मनुष्यो! (वः) तुम्हारे मनों की (पदम्) गतियों, चञ्चलताओं को (हिरण्यनेमयः) सुवर्णसदृश चमक-धमक वाली, या हिरण्य के सदृश चमकते वज्रवाली (विद्युतः) विजुलियाँ भी (न विन्दन्ति) नहीं प्राप्त होतीं। (मे) मेरे (अस्य) इस मन की (पदम्) गतियों को, चञ्चलताओं को (रोदसी) हे द्युलोक तथा पृथिवीलोक वासियो! तुम (वित्तम्) जानो।

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top