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  • अथर्ववेद - काण्ड 18/ सूक्त 4/ मन्त्र 11
    सूक्त - यम, मन्त्रोक्त देवता - जगती छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - पितृमेध सूक्त

    शम॑ग्नेप॒श्चात्त॑प॒ शं पु॒रस्ता॒च्छमु॑त्त॒राच्छम॑ध॒रात्त॑पैनम्। एक॑स्त्रे॒धाविहि॑तो जातवेदः स॒म्यगे॑नं धेहि सु॒कृता॑मु लो॒के ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    शम् । अ॒ग्ने॒ । प॒श्चात् । त॒प॒ । शम् । पु॒रस्ता॑त् । शम् । उ॒त्त॒रात् । शम् । अ॒ध॒रात् । त॒प॒ । ए॒न॒म् । एक॑: । त्रे॒धा । व‍िऽहि॑त: । जा॒त॒ऽवे॒द॒: । स॒म्यक् । ए॒न॒म् । धे॒हि॒ । सु॒ऽकृता॑म् । ऊं॒ इति॑ । लो॒के ॥४.११॥


    स्वर रहित मन्त्र

    शमग्नेपश्चात्तप शं पुरस्ताच्छमुत्तराच्छमधरात्तपैनम्। एकस्त्रेधाविहितो जातवेदः सम्यगेनं धेहि सुकृतामु लोके ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    शम् । अग्ने । पश्चात् । तप । शम् । पुरस्तात् । शम् । उत्तरात् । शम् । अधरात् । तप । एनम् । एक: । त्रेधा । व‍िऽहित: । जातऽवेद: । सम्यक् । एनम् । धेहि । सुऽकृताम् । ऊं इति । लोके ॥४.११॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 18; सूक्त » 4; मन्त्र » 11

    भाषार्थ -
    (अग्ने) हे सर्वाग्रणी ज्योतिर्मय परमेश्वर! (एनम्) इस यजमान को आप, (पश्चात्) पृष्ठभाग से=सुषुम्णा संस्थान से (तप) तपाइए, तपश्चर्या में डालिए, जिस से (शम्) इसको शान्ति प्राप्त हो। (पुरस्तात्) सामने की ओर से, अर्थात् मुखस्थ चक्षु श्रोत्र घ्राण आस्वादन की दृष्टियों से इसे तपाइए, तपश्चर्या में डालिए, जिससे (शम्) इसको शान्ति प्राप्त हो। (उत्तरात्) ऊपर के मस्तिष्क से इसे तपाइए, तपश्चर्या में डालिए, जिससे विचारों की दृष्टि से (शम्) इसे शान्ति प्राप्त हो। (अधरात्) नीचे की ओर से इसे (तप) तपाइए, तपश्चर्या में डालिए, जिससे नीचे की इन्द्रियों से (शम्) इसे शान्ति प्राप्त हो। (जातवेदः) हे सब उत्पन्न पदार्थों में विद्यमान तथा विद्यावान् परमेश्वर! आप (एकः) एक हैं, परन्तु वेदों में आप (त्रेधा) त्रिविध स्वरूपों में (विहितः) कथित हुए हैं। हे परमेश्वर आप (एनम्) इस यजमान को (सम्यक्) सम्यक् रूप में (सुकृतां लोके) सुकर्मियों के आश्रम में या समाज में (धेहि) स्थापित कीजिए।

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