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अथर्ववेद - काण्ड 18/ सूक्त 4/ मन्त्र 81
सूक्त - पितरगण
देवता - प्राजापत्या अनुष्टुप्
छन्दः - अथर्वा
सूक्तम् - पितृमेध सूक्त
नमो॑ वः पितरऊ॒र्जे नमो॑ वः पितरो॒ रसा॑य ॥
स्वर सहित पद पाठनम॑: । व॒: । पि॒त॒र॒: । ऊ॒र्जे। नम॑:। व॒: । पि॒त॒र॒: । रसा॑य ॥४.८१॥
स्वर रहित मन्त्र
नमो वः पितरऊर्जे नमो वः पितरो रसाय ॥
स्वर रहित पद पाठनम: । व: । पितर: । ऊर्जे। नम:। व: । पितर: । रसाय ॥४.८१॥
अथर्ववेद - काण्ड » 18; सूक्त » 4; मन्त्र » 81
भाषार्थ -
(पितरः) हे पितरो! (वः) आप की (ऊर्जे) बलशक्ति तथा प्राणनशक्ति की प्राप्ति के लिए (नमः) हम आप को नम्रभाव से प्राप्त होते हैं। (पितरः) हे पितरो! (वः) आप के (रसाय) जीवनीय आनन्द रस की प्राप्ति के लिए (नमः) हम आप को नम्रभाव से प्राप्त होते हैं।