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अथर्ववेद - काण्ड 18/ सूक्त 4/ मन्त्र 9
सूक्त - यम, मन्त्रोक्त
देवता - त्रिष्टुप्
छन्दः - अथर्वा
सूक्तम् - पितृमेध सूक्त
पूर्वो॑अ॒ग्निष्ट्वा॑ तपतु॒ शं पु॒रस्ता॒च्छं प॒श्चात्त॑पतु॒ गार्ह॑पत्यः।द॑क्षिणा॒ग्निष्टे॑ तपतु॒ शर्म॒ वर्मो॑त्तर॒तो म॑ध्य॒तोअ॒न्तरि॑क्षाद्दि॒शोदि॑शो अग्ने॒ परि॑ पाहि घो॒रात् ॥
स्वर सहित पद पाठपूर्व॑: । अ॒ग्नि: । त्वा॒ । त॒प॒तु॒ । शम् । पु॒रस्ता॑त् । शम् । प॒श्चात् । त॒प॒तु॒ । गार्ह॑ऽपत्य: । द॒क्षि॒ण॒ऽअ॒ग्नि: । ते॒ । त॒प॒तु॒ । शर्म॑ । वर्म॑ । उ॒त्त॒र॒त: । म॒ध्य॒त: । अ॒न्तरि॑क्षात् । दि॒श:ऽदि॑श: । अ॒ग्ने॒ । परि॑ । पा॒हि॒। घो॒रात् ॥४.९॥
स्वर रहित मन्त्र
पूर्वोअग्निष्ट्वा तपतु शं पुरस्ताच्छं पश्चात्तपतु गार्हपत्यः।दक्षिणाग्निष्टे तपतु शर्म वर्मोत्तरतो मध्यतोअन्तरिक्षाद्दिशोदिशो अग्ने परि पाहि घोरात् ॥
स्वर रहित पद पाठपूर्व: । अग्नि: । त्वा । तपतु । शम् । पुरस्तात् । शम् । पश्चात् । तपतु । गार्हऽपत्य: । दक्षिणऽअग्नि: । ते । तपतु । शर्म । वर्म । उत्तरत: । मध्यत: । अन्तरिक्षात् । दिश:ऽदिश: । अग्ने । परि । पाहि। घोरात् ॥४.९॥
अथर्ववेद - काण्ड » 18; सूक्त » 4; मन्त्र » 9
भाषार्थ -
हे मनुष्य! (पूर्वः अग्निः) नासिक्य प्राणाग्नि (पुरस्तात्) पूर्व भाग से (त्वा) तुझे (तपतु) तपाए, और इस प्रकार तेरे मल को दूर कर (शम्) तुझे शान्ति प्रदान करे; (गार्हपत्यः) गृहपति बनाने वाली वीर्याग्नि (पश्चात्) तेरे पश्चिम१ भाग से तुझे (तपतु) तपाए, इस प्रकार तेरे मल को दूर कर (शम्) तुझे शान्ति प्रदान करे; इसी प्रकार (दक्षिणाग्निः) पाचकाग्नि (तपतु) तुझे तपाए, और (ते) तेरे लिए यह अग्नि (शर्म) गृह का सुख देवे, तथा (वर्म) तेरे लिए कवचरूप बने। (अग्ने) अग्निरूप में हे तीनों अग्नियो! तुम (उत्तरतः) उत्तर से, (मध्यतः) मध्य से, (अन्तरिक्षात्) अन्तरिक्ष से, (दिशः दिशः) तथा शरीर की प्रत्येक दिशा से इस मनुष्य की (घोरात्) घोर रोगों से (परि पाहि) पूर्णतया रक्षा करो।
टिप्पणी -
[पूर्वः अग्निः=नासिक्य प्राण फेफड़ों के गन्ध CO2 को दूर करता, तथा रक्त में मिल कर उसके नीलपन को दूर कर रक्त के लालकणों का निर्माण करता है। पाचकाग्नि के स्वस्थ रहते नियमपूर्वक शौचक्रिया होने से रोग नहीं होने पाते। शर्म=गृह (निघं० ३.४), तथा सुख (निघं० ३.६)। तथा उत्तरतः=शिरोभाग; अन्तरिक्षात्=छाती, जिस के फेफड़ों में हवा भरी रहती, तथा जिसमें रहता हुआ हृदय निशिदिन शरीर के अङ्ग-प्रत्यङ्ग पर रक्त की वर्षा करता रहता है। मध्यतः=छाती से नीचे और टांगों से ऊपर का भाग, अर्थात् उदर।] [१. शरीर के ऊपर के हिस्से को "पूर्वकाय" कहते हैं। इस लिए शरीर का अधोभाग "पश्चात्-काय" है, जो कि वीर्याग्नि का स्थान है। पूर्वकाय=The upper part of body of man (आप्टे)। पश्चार्धः=The hinder part of the body (आप्टे)।]