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अथर्ववेद - काण्ड 18/ सूक्त 4/ मन्त्र 71
सूक्त - यम, मन्त्रोक्त
देवता - आसुरी अनुष्टुप्
छन्दः - अथर्वा
सूक्तम् - पितृमेध सूक्त
अ॒ग्नये॑कव्य॒वाह॑नाय स्व॒धा नमः॑ ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒ग्नये॑ । क्र॒व्य॒ऽवाह॑नाय । स्व॒धा । नम॑:॥४.७१॥
स्वर रहित मन्त्र
अग्नयेकव्यवाहनाय स्वधा नमः ॥
स्वर रहित पद पाठअग्नये । क्रव्यऽवाहनाय । स्वधा । नम:॥४.७१॥
अथर्ववेद - काण्ड » 18; सूक्त » 4; मन्त्र » 71
भाषार्थ -
(अग्नये) प्रजाजन को जीवनमार्ग पर आगे ले जानेवाले (कव्यवाहनाय) मेधावियों के लिए मेधावर्धक ज्ञान के वाहनभूत विद्वान् के लिए (स्वधा नमः) आत्म-धारण-पोषणकारी तथा मेधावर्धक अन्न देना चाहिए।
टिप्पणी -
[अग्निः अग्रणीर्भवति (निरु० ७.४.१४), अर्थात् आगे ले जानेवाला। कव्य=कविः मेधाविनाम (निघं० ३.१५), तेभ्यो हितं कव्यम्=मेधावियों के लिए मेधावर्धक ज्ञान। स्वधा=स्वधारण-पोषणकारी। नमः=अन्ननाम (निघं॰ २.७)।]